पतहर

पतहर

मोती बी.ए. : भोजपुरी के कबीर

मोती बी.ए जी की जयंती पर उन्हें शत-शत नमन
*रविशंकर शुक्ल
मोती बी.ए. का जन्म १ अगस्त १९१९ को देवरिया जनपद के बरेजी ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री राधा कृष्ण उपाध्याय एवं मां का नाम श्रीमती कौशल्या देवी था। इनकी शिक्षा बी.ए. और एम.ए. की काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हुई, पर वह अपने नाम के आगे बी.ए. उपनाम लिखते रहें। इनका पूरा नाम मोतीलाल उपाध्याय था।
मोती बी.ए . के बारे में सोचता हूं तो उक्त संदर्भ में पहली घटना जो मेरे जीवन में घटित हुई थी उसका घटनाक्रम कुछ यूं याद आता है। मेरी उम्र 9- 10 साल की रही होगी, मेरे पिताजी ने, शाम को बरहज बाजार से लौटने के बाद एक पुस्तक दिया, बाल कौतूहल वश मैंने उक्त किताब को उलट-पलट कर देखा , पर कुछ ज्यादा पल्ले नहीं पड़ा। वह किताब मोती जी द्वारा लिखित शेक्सपियर रचित सानेत का काव्यानुवाद था, यह बात मेरे पिताजी द्वारा बताई गई थी और साथ में यह भी कि मोती बी.ए. बरहज बाजार में रहते हैं। फिर तो मोती बी.ए. को जानने समझने को एक उत्कंठा जागृत हुई और उनके दर्शन करने की इच्छा भी तीव्र तर हो गई। लगभग 13 साल का होते-होते मैं कक्षा 9 का विद्यार्थी था, हनुमान विद्या मंदिर बरांव में, चूंकि मेरे गांव का अधिकांश छात्र समुदाय बरहज बाजार में ही पढ़ता था तो उसी छात्र समुदाय में से ही किसी ने मुझको सरोजनी नायडू द्वारा रचित अंग्रेजी काव्य का (जो हाई स्कूल में पढ़ाया जाता था) मोती जी द्वारा किया हुआ काव्यानुवाद सुनाया और मैं कॉपी  पर लिख भी दिया। उसकी पंक्तियां अभी भी याद हैं-
बागों में बहार हो फूलों में श्रृंगार हो
मोती बी.ए. जी के लिए यह, वह समय था, जब बरहज बाजार के आसपास की जनता के आम जनजीवन में उनके द्वारा रचित गीतों की अनुगूँज सुनाई पड़ने लगी थीं जिसमें से-
"असों आइल महुवाबारी में बहार सजनी
कोंचवा मातल भुइयां छूवे
महुआ रसे-रसे चूवे"
उनका बेहद लोकप्रिय गीत था।
आगे आने वाले वर्षों में किसी दिन बैलगाड़ी से पिताजी के साथ बरहज बाजार गया तो पिताजी को पान की दुकान के पास खड़े हुए तीन व्यक्तियों ने अभिवादन किया, पिताजी ने मुझे उक्त तीनों सज्जनों का अभिवादन करने को कहा और मैंने तत्काल उनकी आज्ञा का अनुसरण किया,फिर पिताजी ने आगे चलकर मुझे बताया कि वह जो लंबे बालों वाले व्यक्ति थे वही मोती बी.ए. हैं।साथ में उनके श्री रामनरेश पांडे थे और जो तीसरे व्यक्ति थे उनका नाम मुझे इस समय याद नहीं हो पा रहा है।इसके बाद तो मैं हाईस्कूल उत्तीर्ण होने के पश्चात श्री कृष्ण इंटर कॉलेज आश्रम, बरहज का ही विद्यार्थी हो गया। ग्यारहवीं में कुछ विषयों में कम प्राप्तांक के कारण प्रिंसिपल पाठक जी ने मुझे बारहवीं मैं कला वर्ग में बैठने को कहा जबकि ग्यारहवीं में मैं विज्ञान वर्ग का विद्यार्थी था खैर मैं करीब 15 दिनों तक कला वर्ग में पढ़ता रहा उसी पढ़ाई के दौरान इतिहास पढ़ाने हेतु मोती बीए जी आए, उस कक्षा स. 12 'अ' में मोती बी.ए. जी ने पढ़ाने के बीच कुछ प्रश्न पूछा, यह मुझे याद है कि उक्त प्रश्नों के सही-सही उत्तर जिन दो-तीन छात्रों ने दिया, उनमें से एक मैं भी था। उक्त घटना के बाद मैं पुनः विज्ञान से ही बारहवीं में पढ़ा, और बारहवीं पास करने के पश्चात बी.एस.सी. में पढ़ने के दौरान ही मैंने कविताएं लिखना शुरू किया जो कमोबेश अभी भी जारी है‌।
स्व. गोरख पाण्डेय के बारे में मोती बीए की निश्छलता का उदाहरण मैं उन्हीं के शब्दों में देना चाहूंगा- "मुझे याद है कि सन् 1970 के आस-पास ही गौरी बाजार (देवरिया) के डाकखाने में  इनसे भेंट हो गई थी। डाकखाने के इंचार्ज प. रामानुज उपाध्याय को मैं अपनी कविता सुना रहा था। मेरे साथ प. ज्वाला प्रसाद पाण्डेय अनल जी भी थे, समाजवाद के कथित हिमायतियों की एवं सत्ता पक्ष की ईमानदारी पर भोजपुरी में एक व्यंग्य प्रधान कविता थी यह
हेले हेले बबुआ / कुरुई में ढेबुआ/ आ गईल समाजवाद/चाट नून नेबुआ

कविता सुनकर सभी प्रसन्न थे लेकिन एक युवक ने कुछ खुनसाते हुए इसका प्रतिवाद किया और माहौल विवाद का हो गया। मैं कुछ कुंठित सा हुआ। यह युवक मुझे रास नहीं आया।परिचय कराए जाने पर पता चला कि यह युवक काशी विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में एम.ए. हैं। समाजवादी विचारधारा का है और किसान आंदोलन का सक्रिय कार्यकर्ता है। इस घटना के बाद कभी इनसे  मेरी भेंट नहीं हुई।जनसत्ता के द्वारा दुखद काण्ड (उनकी आत्महत्या) का समाचार जानकर ,परिचय का वह दिन याद आया। याद आने का कारण एक और था, इनकी एक कविता (भोजपुरी) इनकी पार्टी में गायी जाती थी और बहुत प्रशंसित थी, इसकी पंक्ति जनसत्ता ने उद्धृत की थी कि-
समाजवाद बबुआ/धीरे-धीरे आई 
यानी कि गौरी बाजार में जो कुछ हुआ था उसका जवाब 'गोरख' ने मुझे दिल्ली जाकर दिया। काश, गोरख पांडे से मेरा गहरा संपर्क उसी समय हो गया होता तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि और कुछ होता या नहीं गोरख का यह कारुणिक अंत कदापि नहीं हुआ होता।"
सरयू के पावन तट पर बसा बरहज नगर उनके साहित्यिक गतिविधियों का केंद्र था। मोती बी.ए., "आज", "अग्रगामी" और "आर्यवर्त" जैसे महत्वपूर्ण समाचार पत्रों में पत्रकारिता एवं संपादन से भी 1939 से 1943 तक जुड़े रहे।
मोती बी.ए. 1944 से 1952 तक सिनेमा के क्षेत्र में भोजपुरी गीतकार के रूप में लाहौर से मुंबई तक प्रवास किये। लगभग 50 फिल्मों में गीत लिखें। साजन (1943), नदिया के पार (1948) अत्यंत लोकप्रिय व चर्चित हैं। मोती बी.ए. की रचनाओं का व्यापक काल खण्ड है जिसमें उन्होंने भोजपुरी, हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू में विपुल रचनाएं दी हैं।
इनके सुपुत्र श्री जवाहर लाल उपाध्याय द्वारा मोती बी.ए. ग्रंथावली नौ खंडों में छपकर आ चुकी है। मोती बी.ए. 18 जनवरी 2009 में महाप्रयाण कर गए। मोती बी.ए. बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। आंदोलन में भाग लिए तो त्रिलोचन जी के साथ जेल में रहे। भोजपुरी साहित्य के तो वह कबीर ही थे।नैतिक सिद्धांतों को समर्पित इस महामानव का निश्चित ही जितना मूल्यांकन होना चाहिए था वह, नहीं हुआ अंत में उन्हीं की पंक्तियों के साथ-
"हम दूर जा चुके हैं इंसानों की बस्ती से
इससे भी और आगे बढ़ते ही चले जाए" 
(कुछ गीत कुछ कविता पृष्ठ 67)

संपर्क:
कृष्णायन M-2/67, 
जवाहर विहार कॉलोनी,
रायबरेली-229010
मो.- 09450626706,
08707020053.

Post a Comment

1 Comments

  1. श्रद्धेय गुरुवर पर मेरे आलेख को आप ने ब्लॉग पर स्थान दिया इसके लिए अत्यंत आभारी हूँ। हार्दिक धन्यवाद और शुभकामनाएं।
    रविशंकर शुक्ल

    ReplyDelete