* ईश्वर को मनुष्य ने बनाया है। प्रकृति ही ईश्वर है, हमें अपनी प्रकृति को बचाना होगा। नदियों,पेडों को बचाना होगा।नारियों को चाहिए कि अपने सम्मान के लिए संघर्ष करें
* " समकालीन स्त्री विमर्श : ईश्वर नहीं नींद चाहिए " विषयक संगोष्ठी संपन्न
गोरखपुर। सत्ता के प्रतिरोध की संस्कृति ही हमारी संस्कृति है।हमें दूसरों के मत का सम्मान करना चाहिए।मीराबाई जैसी महिलाएं आज की नारियों की आदर्श हो सकती हैं। उन्होने तत्कालीन सामंतवाद से लड़कर अपनी जगह बनाई थी।आज की नारियों को भी प्रतिरोध की संस्कृति विकसित करनी चाहिए।
उक्त विचार रामजी सहाय पीजी कालेज रुद्रपुर के प्राचार्य डाॅ संतोष यादव ने व्यक्त किया। वे शुक्रवार को स्व. राम रहस्य महाविद्यालय सिंहपुर में आयोजित समकालीन स्त्री विमर्श : ईश्वर नहीं नींद चाहिए विषयक संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे।
उन्होने कहा कि हमें पीडित व्यक्ति के साथ खड़ा होकर साहित्य लिखना होगा।प्रेमचंद के साहित्य में हमें स्त्री विमर्श मिलता है।नारी को बाजार की संस्कृति से बचा कर ही हम उसको मुक्ति दिला पाएंगे।
अध्यक्षता करते हुए प्रदुम्न दुबे ने कहा कि आज स्त्री विमर्श,दलित विमर्श सेआगे आकर हमें श्रमिक विमर्श करना होगा। क्योंकि दोनों तबका श्रमिक ही है।जब श्रमिकों को शोषण से मुक्ति मिलेगी तभी नारियों की मुक्ति होगी। उन्होने कहा कि बाजार ने सबका दोहन किया है। स्त्रियां अछूती नहीं हैं। हमें बाजार की संस्कृति के खिलाफ लडना होगा।
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दीप प्रज्वलित करते अतिथि |
विशिष्ठ अतिथि एसएसबीएल इंटर कालेज के प्रधानाचार्य अजय मणि ने कहा कि अतीत में नारियों का बहुत सम्मान होता था। उनकी पूजा होती थी।आज नारियों की वर्तमान हालत के लिए जो जिम्मेदार हों उनकी पहचान होनी चाहिए।हमारा देश सीता ,राधा और गार्गी का देश है।
संगोष्ठी में बोलते हुए पत्रकार प्रेमकुमार मुफलिस ने कहा कि शोषणकारी व्यवस्था जब समाप्त होगा तभी नारियों की मुक्ति होगी। तभी नींद भी आयेगी। हमारी समस्याओं को ईश्वर नहीं खत्म करेगा हमें ही करना होगा।
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उपस्थित संभ्रांत वर्ग |
संचालन व विषय प्रवर्तन करते हुए पत्रकार चक्रपाणि ओझा ने कहा कि बाजार अपने मुनाफे के लिए नारियों का इस्तेमाल कर रहा है। विकास के दौर में,२१ वीं सदी के भारत में अगर नारियां दहेज के लिए मार दी जाती हो, कन्या भ्रूण हत्या हो रही हो,बलात्कार की वारदात हो रही हो, तब हमें विचार करने की आवश्यकता महसूस होती है कि आखिर हमारा समाज इतना अमानवीय क्यों होता जा रहा है।
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संबोधित करते पत्रकार चक्रपाणि ओझा |
उन्होंने कहा कि जब असमानता पर आधारित व्यवस्था की जगह समाजवादी मूल्यों वाला समाज नहीं बनेगा, शिक्षा व्यवस्था के भीतर से भी पितृसत्तात्मक मूल्यों की जगह बराबरी के मूल्य स्थापित करने होगें। नारी मुक्ति के लिए जरूरी है कि पितृसत्तात्मक मानसिकता से लोग बाहर आए।
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संयोजक कामरेड रामसिंहासन त्रिपाठी का सम्मान |
संगोष्ठी का औपचारिक उद्घाटन मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण व दीपजला कर अतिथियों ने किया।तत्पश्चात छात्रा अनामिका व शिवानी ने स्वागतगीत व वंदना प्रस्तुत की।स्वागत वक्तव्य बीएड विभाग के अध्यक्ष मृत्युंजय मिश्र ने किया तथा आभार प्राचार्य डाॅ मयंक श्रीवास्तव ने किया।
इस मौके पर मुख्य रूप से वंदना जायसवाल, अर्चना राय, सुशील तिवारी, नित्यानंद त्रिपाठी, वीरेन्द्र यादव, सूर्यकांत,शैलेष तिवारी,प्रसिद्ध नारायण तिवारी,मनोज कुमार, आशीष शर्मा,राजूपाल,विंध्यवासिनी दूबे , कुमकुम, जितेन्द्र तिवारी आदि मौजूद रहे।
संगोष्ठी का संयोजन वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता व चिंतक कामरेड रामसिंहासन तिवारी ने किया।
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