प्रस्तुति: डा. सुशील कुमार राय,
आज नई कविता के सशक्त हस्ताक्षर और गाँधीवादी कवि भवानीप्रसाद मिश्र की जयंती है। वैसे तो उन्होंने 1930 ई. के पहले ही कविताई आरंभ कर दी थी, किंतु उन्हें वास्तविक पहचान 1951 ई. में अज्ञेय के संपादन में प्रकाशित 'दूसरा सप्तक' से मिली।
उन्हें 'गीत-फरोश' की ख्याति मिली, तो उनकी लोकप्रियता को चार चाँद लग गए। चूँकि उनकी काव्ययात्रा छायावाद युग में शुरू हुई थी, इसीलिए उनकी कविताओं में जाने-अनजाने छायावादी कविता का भी प्रभाव देखने को मिल जाता है। उदाहरणस्वरूप उनकी यह रचना देखिए–
*जूही ने प्यार किया*
_जूही ने प्यार किया शतदल से!_
_दोनों के लोक दो, शोक किंतु एक हुए दोनों के_
_संध्या के झुरमुट से मानो निहारा और अश्रु चुए दोनों के_
_धरती पर इसके अश्रु, पानी पर उसके चुए_
_दोनों के लोक दो, शोक किंतु एक हुए।_
_जूही का क्या होगा?_
_धरती ने पूछा जल से!_
_जूही ने प्यार किया शतदल से!_
_प्रश्नों के उत्तर कहीं मिलते हैं_
_केवल हवा का झोंका आया_
_जूही ने अश्रु पिए शतदल हताश हुआ_
_मुरझाया! गाया किसी पानी के पंछी ने_
_ऐसा नहीं होगा कल से!_
_जूही ने प्यार किया शतदल से!_
उनकी कविताओं के साथ-साथ उन्हें गद्यकार, नाटककार और पत्रकार के रूप में भी जाना जाता है। बच्चों के लिए भी उन्होंने सुंदर कविताएँ लिखी हैं। इस संक्षिप्त परिचय के आलोक में उनके प्रदेय का पुण्य स्मरण करते हुए उन्हें शत्-शत् नमन!
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