* डॉ.पिंकी कुमारी बागमार:
अनूप की बाथरूम से ही चिल्लाने की आवाज आई राशी जल्दी नाश्ता तैयार करो ,मैं दो मिनट में नाहा कर आया। अनूप के कहने के पहले ही राशी ने नाश्ता बना कर टेबल पर रख दिया था।
बच्चो का टिफ़िन बॉक्स उनके स्कूल बैग में डालकर ,उन्हें दूध-बिस्किट खाने को दे कर ,राशी अनूप के लिए चाय बना रही थी।अनूप बाथरूम से आते ही सीधा नाश्ते की टेबल पर बैठा ,नाश्ता करते हुए चिल्लाने लगा ..चाय कहाँ है ? अरे भई सारा दिन रसोई में रहती हो फिर भी पता नहीं क्या करती रहती हो ,चाय तक समय में नही मिलती।राशी चाय की प्याली लिए भागती हुई आई ,अनूप को चाय देते हुए कहने लगी ..अभी देरी कहाँ हुई है जी ,चाय तो तैयार है। बच्चो को नाश्ता देने लगी थी ,उनकी स्कूल बस आने का समय हो गया। अनूप अपना टिफ़िन बॉक्स उठा कर ऑफिस के लिए निकल जाता है।
राशी रसोई समेत कर ,बर्तन मांझ कर अपनी सिलाई मशीन ले कर बैठ जाती । सामने दुर्गा पूजा है ,आस-पड़ोस की सभी औरतों का ब्लाऊज ,लड़कियों का सलवार-सूट सब सिलकर राशी को 10 दिन के अन्दर देना है।ऐसा नहीं है की राशी को पैसों की कमी है इसलिए वो ये काम करती ,वह ये काम इसलिए करती क्योंकि उसे ये कम करना अच्छा लगता है , वो अपना खर्च खुद उठाना चाहती है और सबसे बड़ी बात इन कामो में राशी खुद को व्यस्त रखती है, क्योंकि अनूप और दोनों बच्चे आराध्य जो अब बारहवी में है और रिशब जो दसवीं में है सभी अपनी दुनिया में व्यस्त रहते हैं।
अनूप ऑफिस से आने के बाद समाचार या स्पोर्ट्स चॅनल चला कर बैठ जाता और दोनों बच्चे स्कूल से आने के बाद अपने फ्रेंड्स के साथ बाहर घुमने निकल जाते या फिर अपने कमरे में सामने किताब खोल कर मोबाइल फ़ोन में व्यस्त हो जाते।
राशी सारा दिन रसोई में पति और बच्चो की फरमाईश का खाना बना कर उन्हें खिलाती और खाली समय मिलने पर अपने सिलाई में व्यस्त हो जाती। राशी के बेटे की फरमाईश थी की उसे राजमा चावल खाना है ,बेटी ने साफ़ कह दिया की वो छोले भठूरे खाएगी। अनूप ने कहा जो बच्चे खाएँगे वो भी वही खा लेगा हाँ थोडा रायता जरुर उसके लिए बनाना। पर अभी शाम के वक़्त नाश्ते में उसे पकोड़े खाने का मन है।
राशी पति और बच्चो की फरमाईशों के साथ रसोई में गई फटा-फटा उसने बेसन घोला .एक गैस चूल्हे में उसने राजमा कुकर में चढ़ा दिया ,दूसरे चूल्हे में पकोड़े तलने लगी। पकोड़े का नाश्ता चाय के साथ करने के बाद रिशब को कॉफी पीने का मन किया ।राशी ने कहा अभी चाय बना कर दी हूँ और अब कॉफ़ी तो मैं खाना कब बनाउंगी। एक चूल्हे में राजमा चढ़ाया है और एक में छोले और अभी भठूरे और चावल भी बनाना है।फिर तुम्हारे पापा के लिए रायता भी तो बनाना है।
रिशब ने कहा नहीं पिलाना है तो मत पिलाओ ,जितना खिलाती नहीं हो उतना सुनाती हो। एक तुम्ही हो जो काम करती हो और औरते खाना नहीं बनाती क्या ? राशी अपने बेटे के मुहं से अपने लिए ऐसी बाते सुनकर चौक सी गई,उसने अनूप से कहा देख रहें है इसे ये कैसी बाते कर रहा है मुझसे।बेटे को डाटने की जगह अनूप ने कहा ठीक ही ओ कह रहा है वो ,जब देखो रसोई में घुसी रहती हो पर क्या करती हो पता नहीं , एक कॉफ़ी पिलाने में तुमको क्या समस्या हो रही है।
मैं अपने बच्चों के लिए कमाता हूँ और अगर उन्हें ही उनकी पसंद का खाने –पीने न दिया जाए तो फिर तुम्हारा रसोई संभालना व्यर्थ है ।बच्चों के सामने अपने पति से ये सब सुनना राशी को अन्दर तक हिला गया ,पर बिना कुछ कहेवो रसोई में चली गई और थोड़ी देर में ही कॉफ़ी लाकर बेटे को पकड़ा दिया। नाश्ता बनाते ,बर्तन धोते राशी को 7:30 हो चुके थे।खाना बनते-बनते 9:30 हो गया।आराध्य चिल्लाने लगी खाना दो ,सोना है मुझे जल्दी ,सुबह स्कूल है। राशी ने रसोई से आवाज दी सब तैयार है बस रायता में छौंक लगा कर अभी खाना परोसती हूँ। रायता में छौंक लगाते ही उसकी धांस सारे कमरे में फैल गई।
अनूप को धांस से जैसे ही खांसी आई वो गुस्से में आग-बबूला होते हुए राशी पर चिल्लाने लगा खाना बनाना नहीं आता तो रसोई में जाती क्यों हो ? राशी ने कहा जी छौंक लगाने से तो उसका धुंआ उड़ता है इसमें मेरी क्या गलती है ।अनूप चिल्ला कर अपने मर्द होने का प्रमाण देते हुए कह रहा था की कब से बच्चे खाना मांग रहे हैं पर न खाना समय में बनता तुमसे और न ढंग का खाना बनाती पर जब देखो रसोई में व्यस्त रहती ,कभी चीनी ख़त्म हो गई तो कभी तेल ख़त्म हो गया ,यही सुनने मिलता है तुमसे। राशी कहती जी आप कहाँ की बात को कहाँ ले जा रहे हैं चलिए गुस्सा छोडिये खाना खा लीजिए। अनूप कहती नहीं खाना मुझे तुम्हारे हाथो से खाना ,वो आराध्या से खाना परोसने को कहता है ।
अनूप और दोनों बच्चे खाना खा कर अपने कमरे में चले जाते किसी ने राशी को खाने के लिए पूछना जरुरी नहीं समझा । राशी झूटे बर्तनों को समेटती हुई ,अपने आंसुओं को खुद से ही छिपाते हुए सोचती ,सारा दिन रसोई में इनकी फरमाइशों का खाना बनाती ,इनका टिफ़िन,नाश्ता सब कुछ समय में करके देने के बाद भी आज मेरे पति और बच्चें मुझसे कहते की मैं सारा दिन रसोई में क्या करती। अगर मैं रसोई में कुछ नहीं करती तब अब से मैं रसोई में नहीं जाउंगी ।जहाँ से इन्हें खाना होगा खाएँगे,मैं क्यों सबकी बाते सुनूँ।
दूसरे दिन सुबह माहौल शांत था ,न बच्चे टिफ़िन के लिए आवाज लगाए ,न अनूप ने नाश्ता निकालने के लिए कहा ,पर जब अनूप नाहा कर आया तब उसका नाश्ता टेबल पर रखा था ,बच्चो का टिफ़िन उनके बैग के पास रखा था और राशी रसोई में चाय बना रही थी ।
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डॉ.पिंकी कुमारी बागमार
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