स्मृतिशेष हिन्दी के मूर्धन्य विद्वान,वक्ता ,प्रोफेसर और समालोचक डॉ.रामचंद्र तिवारी की 10वीं पुण्य तिथि पर उनको बारंबार प्रणाम !
प्रस्तुति :
डॉ. चन्द्रेश्वर, हिंदी विभाग
(एम एल के पीजी कॉलेज बलरामपुर)
आज स्मृतिशेष डॉ. रामचंद्र तिवारी की 10 वीं पुण्यतिथि है | वे दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर में हिन्दी के प्रोफेसर थे | वे हिन्दी के एक समर्पित, लोकप्रिय और महत्वपूर्ण विद्वान, वक्ता और समालोचक थे | वे हिन्दी साहित्य की गद्य-पद्य की समस्त विधाओं के मर्मज्ञ थे | वे साहित्यालोचना के भारतीय और पाश्चात्य धाराओं के अद्यतन और एकदम नूतन मूल्यों अथवा प्रवृतियों से बख़ूबी परिचित रहते थे | उनको पहली बार सुनने का अवसर मुझे मिला था - सन् 2005 में |
हिन्दी में रिफ्रेसर कोर्स करने के दौरान | वे साहित्य और विचारधारा विषय पर लगभग दो घंटे तक बोले थे और अद्भुत बोले थे | एक मनीषी की तरह | वे जिस तरह देशी -विदेशी भाषा के महत्वपूर्ण लेखकों -आलोचकों को कोट कर रहे थे, वह मेरे लिए अद्भुत था | उनको सुनते हुए मुझे बार-बार अपने जैन कॉलेज, आरा के हिन्दी के प्राध्यापक और आलोचक गुरु डॉ.चंद्रभूषण तिवारी की याद आ रही थी | डॉ. रामचंद्र तिवारी ने उत्तर आधुनिकतावाद को भी सही तरह से समझाया था | उनकी महत्वपूर्ण पुस्तक जो आधुनिक हिन्दी खड़ी बोली गद्य पर है, छात्रों के बीच बेहद लोकप्रिय है | गोरखपुर तराई अंचल से लगा हुआ हिन्दी साहित्य का एक बेहद महत्वपूर्ण गढ़ या दुर्ग है जो कमोबेश आज भी अपनी गरिमा को बनाए हुए है | वहाँ उनके योग्य उत्तराधिकारियों की उपस्थिति अभी बनी हुई है | मैं आज डॉ. रामचंद्र तिवारी को श्रद्धा के साथ स्मरण कर रहा हूँ और इस वाणी के वरद पुत्र की स्मृति को बारंबार प्रणाम भी कर रहा हूँ |
प्रस्तुति :
डॉ. चन्द्रेश्वर, हिंदी विभाग
(एम एल के पीजी कॉलेज बलरामपुर)
आज स्मृतिशेष डॉ. रामचंद्र तिवारी की 10 वीं पुण्यतिथि है | वे दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर में हिन्दी के प्रोफेसर थे | वे हिन्दी के एक समर्पित, लोकप्रिय और महत्वपूर्ण विद्वान, वक्ता और समालोचक थे | वे हिन्दी साहित्य की गद्य-पद्य की समस्त विधाओं के मर्मज्ञ थे | वे साहित्यालोचना के भारतीय और पाश्चात्य धाराओं के अद्यतन और एकदम नूतन मूल्यों अथवा प्रवृतियों से बख़ूबी परिचित रहते थे | उनको पहली बार सुनने का अवसर मुझे मिला था - सन् 2005 में |
हिन्दी में रिफ्रेसर कोर्स करने के दौरान | वे साहित्य और विचारधारा विषय पर लगभग दो घंटे तक बोले थे और अद्भुत बोले थे | एक मनीषी की तरह | वे जिस तरह देशी -विदेशी भाषा के महत्वपूर्ण लेखकों -आलोचकों को कोट कर रहे थे, वह मेरे लिए अद्भुत था | उनको सुनते हुए मुझे बार-बार अपने जैन कॉलेज, आरा के हिन्दी के प्राध्यापक और आलोचक गुरु डॉ.चंद्रभूषण तिवारी की याद आ रही थी | डॉ. रामचंद्र तिवारी ने उत्तर आधुनिकतावाद को भी सही तरह से समझाया था | उनकी महत्वपूर्ण पुस्तक जो आधुनिक हिन्दी खड़ी बोली गद्य पर है, छात्रों के बीच बेहद लोकप्रिय है | गोरखपुर तराई अंचल से लगा हुआ हिन्दी साहित्य का एक बेहद महत्वपूर्ण गढ़ या दुर्ग है जो कमोबेश आज भी अपनी गरिमा को बनाए हुए है | वहाँ उनके योग्य उत्तराधिकारियों की उपस्थिति अभी बनी हुई है | मैं आज डॉ. रामचंद्र तिवारी को श्रद्धा के साथ स्मरण कर रहा हूँ और इस वाणी के वरद पुत्र की स्मृति को बारंबार प्रणाम भी कर रहा हूँ |
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