गीत
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1-
गुत्थियां उलझी रहेंगी,यदि समय तुम मौन होगे।
वाह्य मंडल है सुवासित
शून्य है अंतस में खुशबू
वेदना ही वेदना है
वेदना का मोल बस तू
कामनाएं नित मरेंगी,यदि समय तुम मौन होगे।
कब कसम खाई न हमने,
हाथ कब हमने न जोड़े
उसने ली थीं फेर नज़रें
उसने ही संबंध तोड़े।
ये व्यथाएं चिर बढ़ेंगी,यदि समय तुम मौन होगे।
तन अचेतन हो रहा है
हर जतन कर हार बैठा
हां चकित हूं घाव पर ये
नेह का प्रतिकार कैसा
पीर नद कलकल बहेंगी,यदि समय तुम मौन होगे।
© प्रदीप बहराइची
2-
सभ्यता को आंकना मत तुम कभी अखबार पढ़कर।
ओस की बूंदों से आखिर
तृप्ति कैसे हो सकेगी
धार जल की दूर हो तो
प्यास फिर कैसे बुझेगी
यंत्रणा को आंकना मत तुम कभी अख़बार पढ़कर।
नित्य ढहते ही रहे हैं
रेत निर्मित सब घरौंदे ।
मूल्य हैं भयभीत अब तो
बेवजह जाएं न रौंदे
मान्यता को आंकना मत तुम कभी अखबार पढ़कर।
नित हनन होते रहेंगे
मान के प्रतिमान के भी
ओट पर्दों की लिए कुछ
शत्रु होंगे प्राण के भी
वंदना को आंकना मत तुम कभी अखबार पढ़कर।
©प्रदीप बहराइची
संक्षिप्त परिचय-
▪सम्प्रति- जनपद बहराइच के परिषदीय विद्यालय में शिक्षक के रूप में कार्यरत।
▪लेखन विधा - गीत, कविता,दोहा मुक्तक व ग़ज़ल।
▪प्रकाशित कृति -
1- 'आ जाओ मधुमास में' (काव्य संग्रह)आकृति प्रकाशन, दिल्ली
2- 'चूमा है चांद को' (कविता संग्रह) अंजुमन प्रकाशन, प्रयागराज
@प्रदीप बहराइची
बड़कागांव, पयागपुर
जन- बहराइच, उ.प्र. -271871
मो.नं.- 8931015684
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