पतहर

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सलिल सरोज की ग़ज़ल

:सलिल सरोज की ग़ज़ल:
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वो मुझे मेरी हद कुछ यूँ बताने लगा
जो डूबा मेरे रंग में,बेहद बताने लगा

इक आँधी चली और नेस्तोनाबूत हो गया
वो दिया जो कल सूरज का कद बताने लगा

जहाँ भी मिले अपनों के सर कटे हुए लाश
अखबार उसी को बारहां सरहद बताने लगा

पहले आँख फोड़ते हैं और फिर चश्मा बेचते हैं
कोई पूछे ये माजरा तो मदद बताने लगा

जिसको भी मौका मिला उसने ही लूटा है
वो रोज़ की जुल्मपरस्ती को अदद बताने लगा

यूँ तो तय नहीं होगा अब मंज़िल का सबब
धूप में चलने वाला हर पेड़ को बरगद बताने लगा

जिसकी उम्र गुज़र गई लंका जैसी नगरी में
मौका मिलते ही खुद को सुग्रीव और अंगद बताने लगा

बेटा ने कमाना शुरू किया और ये हादसा हुआ
बात-बात पर अपने बाप की आमद बताने लगा
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