*संस्कृत वांग्मय में विश्वबन्धुत्व विषयक त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न
*हम संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवार में विश्वास करने लगे हैं। जिससे बंधुत्व में विघटन आया है। उदार चरित्र का संकट है। स्वार्थ में हम अनर्थ करते रहते हैं। ऋषियों के आदर्शों को हमें अपने आचरण में लाना होगा। विघटन की वजह से विश्व बंधुत्व प्रभावित हुआ है। यदि हम एकता में विश्वास कर लें तो निश्चित ही विश्व बंधुत्व की तरफ एक कदम बढ़ जाएंगे।
(विभूति नारायण ओझा)
गोरखपुर।भारतीय संस्कृति के संरक्षण के प्रति अपनी गहरी चिंता व्यक्त करते हुए महामहोपाध्याय प्रो रहस बिहारी द्विवेदी ने आज भारत देश इंडिया नाम पर गहरी आपत्ति की।प्रो द्विवेदी के अनुसार एकात्मकता ही विश्वबंधुत्व है। जिस देव की आराधना करते हैं, उसके गुणों को आचरण में अवश्य लाना चाहिए। भाषा का महत्व होता है संस्कृत भाषा नहीं देव तत्त्व है।राष्ट्रीय एकता और अखंडता की रक्षा आवश्यक है।
महामहोपाध्याय प्रो द्विवेदी आज गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर संस्कृत विभाग द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय अंतरर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे।
संस्कृत वांग्मय में विश्वबन्धुत्व विषयक त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र के विशिष्ट अतिथि के रूप में लंदन से आई हुई साध्वी दिव्य प्रभा एच लूसी गेस्ट ने इस तथ्य पर विशेष जोर दिया कि भारतीय संस्कृति एवं संस्कृत वांग्मय के द्वारा विश्व बंधुत्व स्थापित किया जा सकता है।साध्वी दिव्य प्रभा के अनुसार त्रिगुण से ऊपर उठना ही विश्वबंधुत्व है। साध्वी जी के अनुसार श्रीमद्भगवत गीता के अध्ययन से संपूर्ण जीवन को सुव्यवस्थित किया जा सकता है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में अध्यक्ष संस्कृत विभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रोफेसर उमाकांत यादव ने एकात्म मानववाद की व्याख्या की। उन्होंने कहा कि हम संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवार में विश्वास करने लगे हैं। जिससे बंधुत्व में विघटन आया है। उदार चरित्र का संकट है। स्वार्थ में हम अनर्थ करते रहते हैं। ऋषियों के आदर्शों को हमें अपने आचरण में लाना होगा। विघटन की वजह से विश्व बंधुत्व प्रभावित हुआ है। यदि हम एकता में विश्वास कर लें तो निश्चित ही विश्व बंधुत्व की तरफ एक कदम बढ़ जाएंगे। प्रोफ़ेसर यादव ने वसुधैव कुटुंबकम के भाव के प्रसार की बात की।प्रोफ़ेसर यादव का मानना है कि व्यक्ति परिष्करण के माध्यम से ही राष्ट्र और विश्व में सुधार संभव है।
सारस्वत अतिथि के रूप में अध्यक्ष संस्कृत विभाग जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय प्रोफेसर गिरीश चंद्र पंत ने स्व और पर से शून्य होने को ही विश्व बंधुत्व के रूप में प्रतिपादित किया। उन्होंने महोपनिषद के आधार पर विश्व बंधुत्व की मार्मिक व्याख्या की। अध्यक्षीय उद्बोधन प्रोफ़ेसर बनारसी त्रिपाठी पूर्व अध्यक्ष संस्कृत विभाग गोरखपुर विश्वविद्यालय ने देते हुए कहा कि माता और पिता की सेवा ही परम धर्म है। उन्होंने कहा कि मनुष्य में कृतज्ञता का भाव अवश्य होना चाहिए। प्रोफ़ेसर त्रिपाठी के अनुसार संस्कृत वांग्मय से विश्व बंधुत्व प्रसारित होता है। आत्मबंधुत्व ही विश्वबंधुत्व के रूप में परिवर्तित हो जाता है। प्रोफेसर त्रिपाठी के अनुसार यज्ञ और जश्न समान हैं।
संगोष्ठी के संयोजक डॉ मधु सत्यदेव ने अतिथियों का स्वागत किया।संगोष्ठी का प्रतिवेदन डॉ सूर्यकांत त्रिपाठी ने पढ़ा। संस्कृत विभाग के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर मुरली मनोहर पाठक ने पद्यात्मक आभार ज्ञापन किया तथा आचार्य डॉ लक्ष्मी मिश्रा ने कार्यक्रम का संचालन किया। इस अवसर पर वरिष्ठ रंगकर्मी श्री नारायण पांडे का अभिनंदन भी किया गया।
संस्कृत विभाग द्वारा आयोजित संस्कृत वांग्मय में विश्व बंधुत्व विषयक त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के अंतिम दिन दो तकनीकी सत्र संचालित हुए, इन सत्रों के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर सत्यमूर्ति आचार्य जेएनयू तथा प्रोफेसर उमारानी त्रिपाठी अध्यक्ष संस्कृत विभाग महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ रहे। इस अवसर पर प्रोफेसर राजशेखर प्रसाद मिश्र, डॉ देवेंद्र पाल, डॉ धर्मेंद्र सिंह, डॉ मृणालिनी, डॉ स्मिता, डॉक्टर रंजन लता, प्रोफ़ेसर छाया रानी सहित गणमान्यों की उपस्थित रही।