विचार/मातृभाषा दिवस 21 फरवरी।
प्रस्तुति: विभूति नारायण ओझा
भाषाई और सांस्कृतिक विविधता व बहुभाषावाद के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है।2008 में अंतर्राष्ट्रीय भाषा वर्ष घोषित करते हुए संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस को महत्व प्रदान किया।
महात्मा गांधी ने तो हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की बात पर जोर दिया था। उन्होंने मातृ भाषा के रूप में देश दुनिया के सभी नागरिकों से कहा था कि अपनी मातृभाषा का हमें सम्मान करना चाहिए और साथ ही साथ दूसरे की मातृभाषा का भी। अंग्रेजी शासनकाल को छोड़कर सभी ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी हिंदी को प्रमुखता से अपनी भाषा माना। राष्ट्रीय चेतना जागृत करने में भी हिंदी ने महती भूमिका निभाई। महात्मा गांधी ने हिंद स्वराज में मातृभाषा के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि भाषा की अपनी संस्कृति होती है और संस्कृति की अपनी भाषा। आज के समय में जो संस्कृति चल रही है, वह हमारी भारतीय संस्कृति से मेल नहीं खाती है। भारतीय संस्कृति में सभी को साथ लेकर चलने की वसुधैव कुटुंबकम् की भावना की बात की गई है। आज विदेशी भाषा अंग्रेजी का महत्व बढ़ता जा रहा है। अपनी मातृभाषा पढ़ने और बोलने में हमें शर्म आती है, ऐसा माहौल बना दिया गया है।हम जैसी भाषा पड़ेंगे हमारी संस्कृति भी उसी अनुरूप होगी। भारतीय संस्कृति की संरक्षा के लिए हमें अपनी मातृभाषा के महत्व को समझना होगा।
मातृभाषा हमारी संवेदना व जन भावना को प्रकट करने का माध्यम होती है।बाल्यावस्था में तो मातृभाषा का विशेष महत्व होता है।बच्चे को सरलता से कोई भी बात समझाई जा सकती है। हम सबको चाहिए कि अधिक से अधिक अपनी मातृभाषा का प्रयोग करें, उसका प्रचार करें, उसकी सुरक्षा करें और सबसे जरूरी है अपनी मातृभाषाओं पर हो रहे बाजार के हमलों से बचाने की कोशिश करें। जब हमारी मातृभाषा बचेगी, तभी हमारा समाज भी बचेगा और लोकतंत्र भी मजबूत होगा।
मातृभाषा में शिक्षा हो इसके लिए गोखले ने 1810 में हंटर आयोग ने अट्ठारह सौ बयासी में तथा कोठारी आयोग ने 1964 में अपने सुझाव दिए। उनका मानना था कि बालक मातृभाषा में अच्छी शिक्षा सीखते हैं क्योंकि घर परिवार में भी उसी भाषा में बातचीत करते हैं, रहते हैं,उनका रहन-सहन है, जो भाषा हमें रोजी रोजगार से जोड़ती है, संस्कृति से जोड़ती है वही हमारी मातृभाषा है। इसलिए हमें अपनी मातृभाषा के संरक्षण पर, उसके उपयोग पर जोर देना होगा। जो भाषा रोज़ी रोटी से नहीं जुड़ सकती वह मातृभाषा हो ही नहीं सकती। हिंदी और संस्कृत की अपनी संस्कृति रही है और आम बोलचाल की भाषा रही, रोजी रोटी से जुड़ी भाषा है, ऐसे में इसे राष्ट्र-भाषा माना जाना चाहिए।
जिस प्रकार मां हमारी है, मातृभूमि हमारी है, उसे अलग नहीं कर सकते, उसी प्रकार मातृ भाषा को भी हम अलग नहीं कर सकते। मां, मातृभूमि और मातृभाषा को बचाए रखना हम सबकी जिम्मेदारी है।
सभी को अपनी मातृभाषा प्रिय लगती है। प्रोफेसर वशिष्ठ अनूप के शब्दों में........
" अपनी भाषा गुड़, शक्कर सी लगती है,
गैर की भाषा बोलोगे तुतलाओगे।"
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विभूति नारायण ओझा |
संप्रति: संपादक पतहर-पत्रिका देवरिया (गोरखपुर)
संपर्क सूत्र: 9450740268