पतहर

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जनवादी रचनाकार डा डीएम मिश्र : जन्मदिन आज

पतहर, आज अपने प्रिय रचनाकार ग़ज़लगो आदरणीय डॉ डीएम मिश्र जी के जन्मदिवस पर पतहर-पत्रिका परिवार की तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाइयां प्रेषित करते हैं। आदरणीय डॉ साहब आप निरंतर सक्रिय रहें,स्वस्थ रहें।

इस शुभ अवसर पर पतहर-पत्रिका के पिछले अंक में प्रकाशित आप पर केन्द्रित संपादकीय एक बार पुनः..... 


(विभूति नारायण ओझा)

संपादक पतहर-पत्रिका

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 हिन्दी ग़ज़ल की यह सबसे बड़ी सफलता कही जाएगी कि वह पाठक के सबसे निकट रहने वाली तथा संघर्ष व संकट के समय में ताकत का अहसास कराने वाली विधा है।

पतहर-पत्रिका का जून 2018 अंक हिंदी ग़ज़ल केंद्रित अंक के रूप में प्रकाशित हुआ था जिसे हिंदी ग़ज़ल प्रेमियों ने हाथों हाथ स्वीकार किया।साथ ही सलाह दिया कि आगे इसका एक और अंक प्रकाशित किया जाए। फिलहाल हम अंक अभी नहीं दे पा रहे हैं लेकिन इस अंक में हिंदी ग़ज़ल के सशक्त हस्ताक्षर जनवादी ग़ज़लगो डॉ डीएम मिश्र पर कुछ सामग्री प्रकाशित कर रहे हैं। डीएम मिश्र की रचनाओं में ग्रामीण जनजीवन का असर खूब दिखाई देता है। वे एक जनवादी रचनाकार है और निरंतर सक्रिय हैं। डॉ मिश्र गांवों के बदलते स्वरूप को लेकर चिंतित दिखाई देते हैं। वे अपने गजल संग्रह आईना- दर- आईना में लिखते हैं-


नम मिट्टी पत्थर हो जाए

ऐसा कभी ना हो

मेरा गांव शहर हो जाए

ऐसा कभी न हो

मेरे घर की छत नीची हो मुझे

गवारा है

नीचा मेरा सर हो जाए

ऐसा कभी न हो।


मनरेगा योजना के भी भ्रष्टाचार में डूबने की व्यथा को वर्णित करते हुए लिखते हैं कि -


गांवों का उत्थान देखकर आया हूं।

मुखिया का दालान देखकर आया हूं।।

डॉ डीएम मिश्र जन्म दिन

उनका मानना है कि कोई भी समाज कितना भी संभावनाशील बन जाय लेकिन अगर उस समाज या देश की व्यापक आबादी जिसमें मजदूर,किसान,युवा नारी सभी परेशान हों,आजीविका का संकट हो,शोषण हो भूख और गरीबी हो। वहां विकास या प्रगति के दावे करना हास्यास्पद सा लगता है।

देश की धरती उगले सोना, वो भी लिखो तरक्की में।

आधा मुल्क भूख में सोता, वो भी लिखो तरक्की में ।।


डॉ मिश्र बदलाव, प्रतिरोध व यथार्थ चेतना के समर्थ ग़ज़लकार हैं। वे दुष्यंत कुमार, अदम गोण्डवी, रामकुमार कृषक जैसे जनपक्षधर शायरों की कतार में खड़े दिखाई देते हैं। ‘आईना-दर-आईना‘ उनका चर्चित ग़ज़ल संग्रह है। जिसमें वे सामाजिक-राजनीतिक व आर्थिक समस्याओं पर रोशनी डालने की कोशिश करते हैं। डॉ मिश्र की ग़ज़लों में देशकाल की पहचान स्पष्ट है। उनके यहां एक तरफ सत्ताशाली वर्ग के प्रति नफरत है तो दूसरी तरफ सामान्य जन के श्रम के प्रति गहरी सहानुभूति है। वे श्रम में सौंदर्य की तलाश करते दिखाई देते हैं-


तुम्हारी फाइलों में दर्ज क्या है,वो तुम्हीं जानों/

लगे हैं ढेर मलवे के यहां टूटे सवालों के।

डॉ मिश्र की ग़ज़लों में उनकी सौंदर्य दृष्टि परिलक्षित होती है। वे श्रम में सौंदर्य की तलाश करते दिखाई देते हैं-


बोझ धान का लेकर जब हौले-हौले चलती है,

धान की बाली, कान की बाली दोनों संग-संग बजती है।

किसी भी रचनाकार की रचनाधर्मिता की शिनाख्त उसके रचना कर्म और सामाजिक सरोकारों के प्रति प्रतिबद्धता से ही की जा सकती है। वर्तमान में जिन ग़ज़लकारों की बेहद लोकप्रियता है उसकी मुख्य वजह उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता ही है। डीएम मिश्र की ख्याति भी उनकी जनसरोकारी दृष्टि की बदौलत ही है।  

डॉ डीएम मिश्र जन्म दिन

 डॉ डीएम मिश्र जनपक्षधर चेतना के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं।उनकी चर्चा देश के समकालीन ग़ज़लकारों में प्रमुखता से होती है।लगभग सत्तर वर्षीय रचनाकार डॉ डीएम मिश्र का जन्म उत्तर प्रदेश के सुलतानपुर जनपद में 15 अक्टूबर सन् 1950 को एक सामान्य परिवार में हुआ था।इनके पिता रामपति मिश्र सेना में थे। वे अल्पायु में ही वीरगति को प्राप्त हुए।माता रघुराजी कुंवर के संरक्षण में बालक डीएम मिश्र का पालन पोषण अभावों के बीच हुआ।शुरूआती शिक्षा गांव की पाठशाला में हुई तथा आगे की पढाई सुलतानपुर के एक सरकारी कालेज में हुई। लखनऊ विश्वविद्यालय से परास्नातक तथा डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने के पश्चात परिवार की आर्थिक स्थिति को संभालने के लिए गाजियाबाद में एक कालेज नौकरी करने लगे। लेकिन लम्बे समय तक वे घर-परिवार से दूर नहीं रह सके और अध्यापकीय पेशा त्यागकर अपने गृह जनपद में बैंक में नौकरी तलाश लिए तथा सेवानिवृति तक बैंक की सेवा में रहे।वहीं पर उन्होंने साहित्य साधना का काम शुरू किया और आज देश के महत्वपूर्ण व प्रमुख ग़ज़लकारों में श्री मिश्र का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। वे बतातें हैं कि उन्होंने अपना संक्षिप्त नाम प्रसि़द्ध कवि त्रिलोचन के सुझाव पर लिखना शुरू किया था। उनका पूरा नाम डा0 डींगुर मल मिश्र है।

उनके रचना संसार में कविता की छः और ग़ज़लों की चार पुस्तकें अब तक प्रकाशित हैें।इनमें हैं- उजाले का सफर, रोशनी का कारवां, आईना-दर-आईना और वो पता ढूंढें हमारा है।‘आईना-दर-आईना‘ और ‘वो पता ढूंढें हमारा' दोनों ग़ज़ल संग्रह उनकी प्रतिनिधि कृतियां हैं।

उनके साहित्यिक अवदान के लिए समय-समय पर अनेक पुरस्कार व सम्मान भी प्राप्त हुए हैं।(पतहर-पत्रिका मार्च 2020 संपादकीय)

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