पतहर

पतहर

विज्ञान व्रत की कविताएँ


विज्ञान व्रत 




ग़ज़ल ----

टूट  कर  भी   सच   कहा
आइना       है      आइना

जिन्दगी   का   फ़लसफ़ा
आज  तक  उलझा  हुआ 

आपका     अंदाज़      हूँ
मैं  भला  ख़ुद  क्या   रहा

आप  भी   चुप  हो   गये
आपसे    है     ये    गिला 

नामवर    थे   जो   कभी
आज   हैं    वो    लापता

                 विज्ञान  व्रत 


ग़ज़ल ----

अब  तो  उसको   मरने  दो
एक   ज़ख़्म   है  भरने   दो

वो   भी    रंगत     बदलेगा   
बस  ये    दौर   गुज़रने   दो

वो   ख़ुशबू   ही  ख़ुशबू   है
उसको  सिर्फ़   बिखरने  दो

लोग       उसे      पहचानेंगे  
मेरा    रंग      उतरने      दो

वो   चमकेगा     सूरज - सा
बस  अँधियार   पसरने   दो

मैं भी  सच - सच  कह दूँगा
उसको  आज   मुकरने   दो

                    विज्ञान  व्रत


ग़ज़ल ----

मैंने    अपना   लहजा    रक्खा  
यों  महफ़ूज़    ख़ज़ाना   रक्खा 

दुनिया - भर  से   रिश्ता  रक्खा
यानी   ख़ुद  को   तनहा  रक्खा

तामीर   नहीं    हो     पाया   मैं
लेकिन   अपना  नक़्शा   रक्खा

कब का ख़ुद को   बाँट चुका  हूँ
जाने  किसने   कितना    रक्खा

वो दरिया था   दरिया - दिल भी
फिर क्यों सबको  प्यासा रक्खा 

                          विज्ञान  व्रत


ग़ज़ल ----

आपने    मुझको    चुना    हो
काश    ऐसा   ही    हुआ   हो

आप    जिसको    ढूँढ़ते     हैं
क्या   पता    वो    लापता  हो

अब   वही    मुझको   जियेगा
डो कि मुझ पर  मर - मिटा हो

क्या   लड़ूँगा    अब  उसी   से
वो  जो   मेरा   हो    चुका   हो

फिर  कभी   दुनिया  बने  जब 
आदमी      इन्सान -  सा     हो

                       विज्ञान  व्रत