*भोग और लोभ के लिए हो रहा प्रकृति का दोहन : डॉ सच्चिदानंद
गोरखपुर।आहार ही औषधि है। आहार को औषधि मानने से रोग की संभावना खत्म हो जाती है। आहार परम औषधि है। पोषण व निष्कासन की क्रियाएं नियमित होती हैं। इन दोनों क्रियाओं में संतुलन होना चाहिए। हमें आहार में कच्ची चीजों का सेवन करना चाहिए।
उक्त आशय का विचार प्राकृतिक चिकित्सा एवं कृषि वैज्ञानिक बतौर मुख्य अतिथि डाॅ0 सचिदानन्द ने व्यक्त किया। वे शनिवार को रामरहस्य महाविद्यालय में आयोजित "स्वास्थ्य रक्षण का विज्ञान’’ विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि चीनी, नमक, मैदा व रिफाइन आदि का सेवन छोड़कर हम स्वस्थ्य हो सकते हैं। पानी का भरपूर उपयोग करें क्योंकि पानी भी औषधि है। संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन करते हुए आयोजन के प्रायोजक व चिकित्सा विज्ञान संकाय, बी0एच0यू0 के प्रो0 राजा वशिष्ठ ने कहा कि आज के भागदौड़ भरी जीवन शैली में स्वास्थ्य रक्षण की जानकारी आवश्यक है। हमें अविद्या रूपी विष को विद्या रूपी अमृत से संतुलित करने का प्रयत्न जरुरी है।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए सेवा संघ के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमरनाथ भाई ने कहा कि आज जीवन का संकट है। भोग और लोभ के लिए दुनिया व प्रकृति को रौंदा जा रहा है। प्रकृति विस्फोट कर रही है। कभी वह प्रकृति हमारी माँ होती थी। हमारे पूर्वजों ने इसके महत्व को समझा था। हमें इसको बचाना चाहिए। आज धरती माँ को जहर पिलाया जा रहा है। आज इसका दोहन हो रहा है।
उन्होंने कहा कि आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा का सेवन कर जीवन को सुंदर बनाया जा सकता है। संगोष्ठी में बोलते हुए मण्डलायुक्त ने कहा कि स्वस्थ्य रहने के लिए मनुष्य को खुद से प्रेम करना चाहिए। सभी मानवों को चाहिए कि रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें, स्वस्थ्य रहने के लिए यह मंत्र के समान है। उन्होंने सांस लेने, भोजन करने व विश्राम करने के तरीके को छात्रों को समाझाया। उन्होंने कहा कि हमें खाने वाली चीज को पीनी चाहिए और पीने वाली चीज को खाना चाहिए।
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए आमंत्रित अतिथि कविराज आत्मराम दूबे ने आयुर्वेद के महत्व को विस्तार से बताया। उन्होंने दिनचर्या व निशिचर्या के बारे में श्रोताओं को कई जानकारी दी। उन्होंने कहा कि लहसुन, हर्रे, हल्दी, सरसो तेल जैसे घरेलू औषधियों के महत्व को बताया। कहा कि मनुष्य को सूर्योदय से तीन घंटे तक भोजन नहीं करना चाहिए। मधुमेह के कारणों पर चर्चा करते हुए कहा कि आरामतलब जीवन शैली, मांसाहारी, मद्यपान, मीठा जैसे वजहों से मधुमेह होता है। आवला, जामून, करौला जैसे फल इसके लिए फायदेमंद हैं। हमें इनका सेवन करना चाहिए।
वाराणसी से आये स्वराज आश्रम के सनातनी रामानंद ने कहा कि काया का सबसे बड़ा सुख है निरोगी रहना। अगर सबको सुख चाहिए। व्यायाम नियमित रूप से करना चाहिए।
विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए बी0एच0यू0 से आये वैद्य डाॅ0 चन्द्रभूषण का ने कहा कि स्वास्थ्य सबसे महत्वपूर्ण है। हमारे लिए हमारी प्रकृति ने हमें जो कुछ दिया है, सबका हमारे जीवन में महत्व है। छात्र-छात्राओं को वनस्पतियों के महत्व को जानना चाहिए।
आचार्य हरिप्रसाद सिंह ने कहा कि कला और संगीत को जीवन में उतारना चाहिए। लोक संस्कृति के प्रति हमें सतर्क रहना होगा। यह बचेगी तो हमारा जीवन और उन्नत होगा। इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए प्रबंधक गिरीश राज त्रिपाठी ने कहा कि यह सौभाग्य है कि इतने बड़े विद्वानों ने हमें समय दिया। संगोष्ठी का संचालन विजय कुमार यादव ने किया तथा आभार ज्ञापन शिक्षक चक्रपाणि ओझा, आशीष शर्मा ने किया। इस अवसर पर मुख्य रूप से प्रद्युम्न दूबे, रामसिंहासन तिवारी, कृष्ण कुमार तिवारी, मृत्युंजय मिश्रा, प्रवेश कुमार श्रीवास्तव, वीरेन्द्र यादव, शैलेष त्रिपाठी, कृष्णानंद तिवारी, वन्दना जायसवाल, अर्चना राव, सपना मिश्रा, नम्रता, सोनाली, बृजेश मनोज, कविता, कुमकुम, शिवांगी, सुशील तिवारी समेता सैकड़ों लोग मौजूद रहे राजकूपर, राज, जितेन्द्र तिवारी आदि लोग उपस्थित रहें।
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