* डी एम मिश्र के गजल संग्रह ‘वो पता ढूँढे हमारा’ का विमोचन सम्पन्न
*दुष्यन्त ने गजल को यथार्थपरक बनाया - कौशल किशोर
*डी एम मिश्र की गजलें हमारी बोली-बानी की - स्वप्निल श्रीवास्तव
*ग़ज़लों की भाषायी संस्कृति गंगा-जमुनी तहजीब से बनी - रामकुमार कृषक
*डा मालविका हरिओम ने गजल गायन से समां बांधा
लखनऊ। ‘रेवान्त’ पत्रिका की ओर से कवि डी एम मिश्र के नये ग़ज़ल संग्रह ‘वो पता ढूंढे हमारा’ का विमोचन रविवार को लखनऊ के कैफी आजमी एकेडमी के सभागार में सम्पन्न हुआ। यह उनका चौथा ग़ज़ल संग्रह है। जाने माने आलोचक डा जीवन सिंह, मशहूर कवि व गजलकार रामकुमार कृषक, कवि स्वप्निल श्रीवास्तव, ‘रेवान्त’ के प्रधान संपादक कवि कौशल किशोर, गजलकार व लोक गायिका डा मालविका हरिओम, ‘रेवान्त’ की संपादक डा अनीता श्रीवास्तव और कवयित्री सरोज सिंह के हाथों ग़ज़ल संग्रह का विमोचन किया गया। मंच पर कथाकार शिवमूर्ति व ‘जनसंदेश टाइम्स’ के प्रधान संपादक कवि सुभाष राय भी मौजूद थे।
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लोकार्पण करते कवि व संपादक सुभाष राय, कौशल किशोर, कथाकार शिवमूर्ति, डॉक्टर मालविका हरिओम, डॉक्टर अनीता,कवि स्वप्निल, आलोचक जीवन सिंह, रामकुमार कृषक, डॉ डी एम मिश्र, व सरोज सिंह |
इस मौके पर हिन्दी ग़ज़लों पर एक परिसंवाद तथा कविता पाठ का भी आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत डा मालविका हरिओंम के संक्षिप्त वक्तव्य से हुई। उन्होंने डी एम मिश्र की दो ग़ज़लें सुनाकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। उसके बाद विमर्श का सिलसिला शुरु हुआ। वक्तओं का कहना था कि डी एम मिश्र की ग़ज़लें एक ऐसा आईना है जिसमें पिछले पांच साल के समय और समाज को देखा जा सकता है। यहा आम आदमी की दशा-दुर्दशा है तो वहीं इस अंधेरे से बाहर निकलने की छटपटाहट भी है। जहां एक तरफ अन्याय का प्रतिकार है, वहीं इनमें श्रम का सौदर्य है। बदलाव की चेतना है। उम्मीद की किरन है। इनमें जनतांत्रिक चेतना को बखूबी देखा जा सकता है।
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संबोधित करते आलोचक जीवन सिंह |
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डा जीवन सिंह ने मार्क्स को उद्धृत किया कि कविता मानवता की मातृभाषा है। उनका कहना था कि साहित्य हमें मनुष्य विरोधी के विरुद्ध खड़ा करता है। हमें इन्सान बनने की सीख देता है। आज समासिकता व बहुलता की हमारी संस्कृति पर खतरा है। ग़ज़ल बहुलता की संस्कृति की रक्षा करने वाली विधा है। यही काम डी एम मिश्र की गज़लें करती हैं । ये असली हिन्दुस्तान को सहज अन्दाज में दिखाती है। यहां मध्यवर्गीय सीमाओं की तोड़ने की कोशिश है। इसके फैलाव का दायरा व्यापक होने की वजह है गांव से रिश्ते को बनाये रखना। यह जितना मजबूत होगा इनकी गजल की विश्वसनीयता उतनी ही बढ़ती जाएगी। जीवन सिंह ने डी एम मिश्र की कई ग़ज़लों का उदाहरण देते हुए कहा कि ये जितना पालिटिकल है, उतना ही सामाजिक भी।
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कौशल किशोर जी |
बीज वक्तव्य ‘रेवान्त’ के प्रधान संपादक तथा जसम के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष कवि कौशल किशोर ने दिया। उनका कहना था कि कविता की दुनिया विभिन्न काव्यरूपों से बनती है जिसमें ग़ज़ल विधा भी है लेकिन यह आज हिन्दी आलोचना के विमर्श से आमतौर पर बाहर है। यह गजल की सीमा नहीं आलोचना की दशा को दिखाता है। भारतेन्दु के काल से लेकर साहित्य के हर दौर में ग़ज़लें लिखी गयीं। लेकिन दुष्यन्त ने इसे यथार्थपरक बनाया, उसे समकाल से जोड़ा। यहां सामाजिक चेतना की भरपूर अभिव्यक्ति हुई। यह हिन्दी गजलों में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। अदम गोण्डवी, शलभ श्रीराम सिंह, गोरख पाण्डेय जैसे कवियों ने इसे आगे बढ़ाया। डी एम मिश्र की ग़ज़लें इसी परम्परा से जुड़ती है। उनका नया संग्रह इसका उदाहरण है।
कवि स्वप्निल श्रीवास्तव ने कहा कि डी एम मिश्र की गजलों में किसी तरह की नजाकत या नफासत नहीं है और न ये बातों को घुमा फिरा कर कहते हैं। ये ठेठ भाषा की ग़ज़लें हैं। हमारी बोली-बानी की। उन्हीं के बीच से शब्द उठाते हैं। इनकी नजर समकालीन हलचलों पर है। अन्य गजलगो की तरह वे अतीतरागी नहीं हैं बल्कि वर्तमान में घटित हो रही घटनाओं पर उनकी नजर है। उसे ही अपनी गजल की विषय वस्तु बनाते हैं। राजनीति के पतन के अनेक मंजर इनकी ग़ज़लों में देखने को मिल सकते हैं।
वरिष्ठ कवि रामकुमार कृषक का कहना था कि हिन्दी कवियों ने यथार्थवादी व समाजोन्मुख काव्य परम्परा के द्वारा जिस काव्य संस्कृति का विकास किया डी एम मिश्र इसी संस्कृति के वाहक हैं। शोषित, पीड़ित व वंचित समाज की त्रासदियों व विडम्बनाओं तथा उनकी संघर्ष चेतना के अनेक बिम्ब उनके शेरों में उभरते हैं। इनमें शोषकों व जनता के लुटोरों की पहचान है। गजलों की भाषायी संस्कृति गंगा-जमुनी तहजीब से बनी है। इन्हें न हिन्दी से गिला है, न उर्दू से शिकायत। भाषायी प्रयोग बिना वैज्ञनिक दृष्टि के संभव नहीं। इन ग़ज़लों में यह दृष्टि निरन्तर सक्रिय दिखायी देती है।
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डॉ डी एम मिश्र |
कार्यक्रम के अन्त में कविताओं का भी श्रोताओं ने आस्वादन किया। कविता सत्र की अध्यक्षता रामकुमार कृषक ने की तथा डी एम मिश्र, डा मालविका हरिओम तथा स्वप्निल श्रीवास्तव ने अपनी गजलों के विविध रंग से परिचित कराया। इस आयोजन के लिए डी एम मिश्र ने ‘रेवान्त’ पत्रिका तथा लखनऊ के साहित्य प्रेमियों के प्रति आभार प्रकट किया। डा अनीता श्रीवास्तव ने अतिथियों का स्वागत किया तथा मंच का कुशल संचालन कवयित्री सरोज सिंह द्वारा किया गया। धन्यवाद ज्ञापन नीरजा शुक्ला ने किया।
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डॉ मालविका हरिओम |
इस मौके पर विजय राय, हरीचरण प्रकाश, नलिन रंजन सिंह, दयानन्द पाण्डेय, प्रताप दीक्षित, राजेन्द्र वर्मा, रविकान्त, बिन्दा प्रसाद शुक्ल, महेन्द्र भीष्म, निर्मला सिंह, देवनाथ द्विवेदी, विमल किशोर, शोभा द्विवेदी, सीमा मधुरिमा, सत्यवान, अनिल कुमार श्रीवास्तव, ज्ञान प्रकाश, दव्या शुक्ला, आशीष सिंह, फरजाना महदी, उमेश पंकज, आर के सिन्हा, राजवन्त कौर, एम हिमानी जोशी, विजय पुष्पपम, इरशाद राही, नूर आलम, माधव महेश, प्रमोद प्रसाद, रामायण प्रकाश, राजीव गुप्ता आदि उपस्थित रहे।
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