पतहर

पतहर

कहानीकार -संपादक गिरीश चंद्र श्रीवास्तव नहीं रहे !

हिंदी कथा जगत में प्रमुख, निष्कर्ष पत्रिका के संपादक जलेस के संरक्षक, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ गिरीश चंद श्रीवास्तव का आज निधन हो गया । उनके निधन से साहित्यकारों में गहरा दुख है । वे सिर्फ साहित्यकार ही नहीं बल्कि एक मार्गदर्शक और अध्यापक भी थे। उनके चले जाने से साहित्य जगत में निराशा छाई हुई है।पतहर पत्रिका के तरफ से हार्दिक श्रद्धांजलि।

*  कुछ साहित्यकारों के विचार व श्रद्धांजलि :

* केसी लाल, पूर्व अध्यक्ष हिंदी विभाग, गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर,
गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव के निधन का समाचार पढकर बडा दुख हुआ। उन्होंने निष्कर्ष पत्रिका के माध्यम से हिन्दी साहित्य की बड़ी सेवा की है किन्तु हमेशा अलग -थलग पडे रहे और चुपचाप चले गए। वे एक अच्छे कहानीकार थे और लोगों को लिखने की प्रेरणाएं देते रहते थे। ऐसे साहित्य सेवी और सहृदय व्यक्ति के निधन से साहित्य और समाज की बड़ी क्षति हुई है। ईश्वर दिवंगत आत्मा को चिर शांति प्रदान करें। हार्दिक श्रद्धांजलि।

* रामकुमार कृषक
गिरीश जी के देहांत से दुखी हूं।उनसे हुई मुलाकातें याद आती हैं । उनकी स्मृति को प्रणाम !

* कौशल किशोर
कथाकार, चिन्तक, 'निष्कर्ष' के संपादक व मेरे अत्यन्त प्रिय मित्र डा गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव के निधन की मर्माहत करने वाली खबर मिली । दिल्ली में होने की वजह से अन्त्येष्टी में शामिल न हो पाने व उनका अन्तिम दर्शन न कर पाने का दुख है । उन्हें लेकर कुछ योजना थी, उनके जीवन काल में नहीं कर पाया । इस दुख से कभी उबर नहीं पाउंगा । अपने प्रिय साथी रचनाकार जिनसे अत्यधिक स्नेह मिला, उन्हें भारी मन से नमन करता हूं ।

* डीएम मिश्रा
हमारे जिले के कर्मठ साहित्यकार जिसने हम जैसे कितने लोगों का मार्गदर्शन किया है।  आज इस खबर ने मर्माहत कर दिया। दुखी मन से अपने  प्रिय कथाकार को  विनम्र श्रद्धांजलि देता हूँ। नमन करता हूँ।

* चंद्रेश्वर
वरिष्ठ हिंदी कहानीकार, लघु पत्रिका 'निष्कर्ष' के संपादक,अँग्रेज़ी के विद्वान प्राध्यापक और जलेस, लखनऊ इकाई के संरक्षक मंडल के सदस्य डॉ.गिरीश चंद्र श्रीवास्तव अब हमारे बीच नहीं रहे। उनसे नब्बे के दशक के आरंभ से ही मेरा परिचय हुआ था , पत्राचार के मार्फ़त, जब मैं वल्लभ विद्यानगर में रिसर्च कर रहा था। बलरामपुर और लखनऊ में रहते हुए उनसे मेरा रिश्ता और ज़्यादा प्रगाढ़ होता गया था। इधर वे लंबे अरसे से बीमार थे और उनकी स्मृति कमज़ोर पड़ रही थी। वे सुलतानपुर के गणपति सहाय डिग्री कॉलेज से रिटायरमेंट के बाद लखनऊ के जानकीपुरम में मकान बना कर अपने पूरे परिवार के साथ रह रहे थे। जहाँ तक मुझे स्मरण आ रहा है, वे दो हज़ार दो या तीन के बाद लखनऊ में अा गए थे। उन्होंने जलेस की लखनऊ इकाई को नए सिरे से गठित करने का काम किया था। इस सिलसिले में वे लखनऊ में कमता स्थित मेरे अावास पर वर्ष 2007 या 2008  में दो-तीन बार आए थे। मैं जलेस के गठन को लेकर उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया था। इसको लेकर वे मुझसे नाराज़ भी हुए थे। उनके अंदर प्रबल जिजीविषा थी । वे जीवन के अंतिम क्षणों तक लिखने-पढ़ने को लेकर उत्साहित थे । वे अपने जीवन के नवें दशक में चल रहे थे।वे कुछ माह पहले तक लखनऊ की साहित्यिक गतिविधियों में सक्रिय उपस्थिति दिखाते रहे। वैसे जलेस से अंतिम दिनों में वे मोहभंग की पीड़ा से भी गुज़र रहे थे।उनका न होना आज मुझे उदास कर गया है ।उनको मेरी विनम्र श्रद्धांजलि ।

* स्वप्निल श्रीवास्तव
अब एक और आघात । गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव हमारे बीच से चले गए ।उनसे आठवे दशक से मेरा परिचय था । वह निष्कर्ष नाम से एक पत्रिका निकलते थे । इस पत्रिका से कई कवि -लेखक प्रकाश में आये । कुछ तो उनके कद से बड़े हो गए हैं । वे जीवन भर सहज और निस्पृह बने रहे । उनके लेखक रूप को कम स्वीकृति मिली । वे टिगड़मी नही थे , जो मशहूर होने का अचूक  शर संधान है ।
  जिस गर्मजोशी से मिलते थे , वह गर्मजोशी हम जैसे लोगों के बीच से अनुपस्थित हो रही है ।
हर जीवन को मृत्यु का सामना करना पड़ता है । यही हमारा आर्य सत्य है ।बहुत याद आएंगे गिरीश जी । कुछ सुखद सुबहों और अच्छी शामों की दास्तानें हमारी स्मृति में दर्ज है , जिन्हें भूलना कठिन होगा ।
  अंतिम विदा गिरीश जी ।

* अशोक चन्द्र
गिरीश जी से खाकसार का भी पुराना रिश्ता है ।अभी कल ही उनके बाबत बँधु कुशावती जी लँबी बातचीत हुई ।उनकी सेहत को लेकर हम फिक्रमँद थे और आज ही उनके जाने की खबर मिली।बहुत बडी क्षति और असहनीय आघात।

* संभू बदल
बहुत ही दुखद समाचार है। उनसे फोन पर बातें होती रही हैं। आत्मीय और सरल व्यक्तित्व के धनी प्रिय रचनाकार को सादर नमन,हार्दिक श्रद्धांजलि।

* अरविंद कुमार
आदरणीय गिरीशचंद्र श्रीवास्तव जी नहीं रहे, यह खबर मर्माहत करने वाली है। उम्र के इस पड़ाव पर भी वे साहित्य की दुनिया से कितना लगाव रखते थे कि हमें रश्क होने लगता था। जब कभी मन बेचैन होता तो फोन करते और पुराने जुड़ावों की बातें करने लग जाते। कभी-कभी तो वक़्त की सीमा तक भूल जाते और फिर से कुछ नया करने की ठान लेते। पर बार-बार उम्र आड़े आ जाती।इसे वे भी जानते थे। उन्होंने निष्कर्ष में कहानी पर मेरे कई लेख छापे थे जिसके लिए मैं आज भी उनका शुक्रगुजार हूं। उन्हें मेरी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित है।


* आशीष सिंह
सादर नमन गिरीश जी
दोस्तों  हमारे प्रिय कथाकार गिरीश चंद्र श्री वास्तव जी  एक लम्बी बीमारी के बाद हम सबको छोड़कर चले  गये हैं । हम सब युवाओं के साहित्यिक गार्जियन थे गिरीश जी । उनका जाना हम सबके लिए अत्यंत दुखद है ।
सादर नमन ।

* फूलचंद गुप्त
अरे यह क्या हो गया! गिरीश जी बेहतरीन इंसान थे। मुझे उनसे हुई पहली मुलाकात अब तक याद है। मैं सुलतानपुर अपनी छोटी बहन के यहाँ ठहरा हुआ था। फोन करते ही सायकिल लेकर तुरंत आ पहुंचे। दस बारह साहित्यकारों को एकत्र कर शाम को गोष्ठी का आयोजन कर लिया। वे यह जान कर बहुत प्रसन्न थे कि मेरी पहली कहानी निष्कर्ष में छपी थी। बहुत सरल स्वभाव के थे।मैं उनके देहांत के समाचार से बहुत दुखी और उदास हूँ।

* दिनेश चित्रेश
गिरीशजी का अचानक चला जाना स्तब्धकारी है। कुछ दिनों से वे अस्वस्थ चल रहे थे। मगर बातचीत में एक गर्मजोशी अब भी थी। तफ़सील से घर परिवार की कुशल क्षेम लेत थे। लेकिन मृत्यु का क्या, यह एक ऐसा सच है, जिसका देर सबेर सब को सामना करना पड़ता है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें। ओऽम् शाति: !

* सुरेश सलिल
गिरीश जी मेरे मित्रों में थे ।सातवें दशक से सदी के अंतिम दशक तक बराबर उनसे मैत्रीभाव रहा । वह सब याद आरहा है । उनकी दिवंगत आत्मा के प्रति मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि ।

* मदन मोहन
ओह ! गिरीश जी का जाना किसी ‌सगे बड़े भाई के जाने के समान है । हम जैसों को बनाने- तराशने में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता । आप को आखिरी आत्मीय सलाम आदरणीय गिरीश जी ।


* अखिलेश श्रीवास्तव
बहुत जुझारू और समर्पित रचनाकार थे गिरीश जी। मेरा लगभग दो दशक पुराना परिचय था। कुछ वर्षों पूर्व तक प्रायः शाम के वक्त मेरे घर आते थे और घंटों उनसे बातें होती थीं। कई बार निष्कर्ष मे मेरी रचनाएं भी प्रकाशित की थीं उन्होंने। उनको विनम्र श्रद्धांजलि।

* अजित प्रियदर्शी
अत्यंत दुखद सूचना है कि वरिष्ठ कथाकार,आलोचक और  " निष्कर्ष " पत्रिका के सम्पादक डाॅ. गिरीशचन्द श्रीवास्तव का आज सुबह लोहिया अस्पताल,लखनऊ में निधन हो गया।सुल्तानपुर के एक डिग्री कालेज में अंग्रेजी के एसोसिएट प्रोफेसर पद से रिटायर्ड होने के बाद उन्होंने सुल्तानपुर और बाद में लखनऊ,में जनवादी लेखक संघ से नये लेखकों को जोड़कर उन्हें सक्रिय किया। वे जनप्रतिबद्ध लेखक थे और साहित्य में प्रतिबद्धता और
विचारधारा को बहुत महत्वपूर्ण मानते थे।जनवादी लेखक संघ से आजीवन जुडे़ रहे।सुल्तानपुर में लगातार बडी़
-बडी़ गोष्ठियाँ की।सुल्तानपुर में नये लेखकों को आगे
बढा़ने में उन गोष्ठियों का बडा़ हाथ है।लखनऊ आने के
बाद उन्होंने यहाँ जलेस को सक्रिय किया और नये-पुराने
लेखकों को जोडा़।लगातार गोष्ठियाँ आयोजित कीं। उनकी बढ़ती उम्र और अस्वस्थता की वजह से जलेस,
लखनऊ, कई साल लगभग निष्किय भी रहा।
२०११ में जब जलेस,लखनऊ,के सक्रिय होने पर वे
उत्साह से लबरेज होकर गोष्ठियों में शिरकत करने लगे।
बाद में जलेस,लखनऊ,के एक अहम पदाधिकारी के मनमाने निर्णयों का विरोध करने के कारण वे संगठन में उपेक्षित कर दिये गये। वे जलेस,लखनऊ,में कुछ लेखकों
को किनारे लगाने की वजह से दुखी थे और उन्होंने जलेस
लखनऊ की गोष्ठियों जाना बंद कर दिया। वे संगठन के कुछ अवसरवादी और कैरियरिष्ट पदाधिकारियों द्वारा
संगठन को नुकसान पहुँचाने के बारे में लम्बी बातें करते
थे।वे बहुपठित आलोचक थे।उन्होंने पश्चिम मार्क्सवादी आलोचकों और ' न्यू क्रिटिसिज्म ' के आलोचकों को
खूब पढा़ था। कथा-साहित्य की गंभीर आलोचना में
उनका नाम आदर के साथ लिया जाता था।लखनऊ
के कथाकार अपनी कथा रचनाओं के विमोचन या उस पर आयोजित परिचर्चा में बुलाने से संकोच करते थे।क्योंकि उन्हें पता होता था कि वे कथा-छिद्रों को खोज
-खोजकर उद्घाटित कर देंगे। वे मीडियाकर आलोचक नहीं थे।मित्र रचनकारों की रचनाओं की कमियों को भी उद्घाटित करने में संकोच नहीं करते थे।वे आलोचना की
कोई किताब लिखने में जुटे थे,जो पूरी होगी या शायद
अधूरी रह गयी होगी। वे साहित्य और संगठन में पूरी तरह
डूबे हुए रचनाकार थे।
पिछले छह महीने से अस्वस्थ चल रहे थे और आज सुबह उनका देहान्त हो गया।
 #अश्रुपूरितश्रद्धांजलि  #लालसलाम

* आर के पालीवाल
हमारे लखनऊ प्रवास के दौरान 1998 से 2004 तक उनसे बहुत बार आत्मीय चर्चा हुई हैं।निष्कर्ष पत्रिका वे दशकों तक एकला चलो रे की तरह निकाल रहे थे।
हिंदी साहित्य के लिए आजीवन समर्पित रहे गिरीश जी को विनम्र श्रद्धांजलि।


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