- वेलेंटाइन-डे पर विशेष -
एक तरफ प्यार और दूसरे ओर पहरा। इसी अंदाज में हर साल मनाया जाता है ‘वेलेंटाइन डे‘।भारतीय संस्कृति के रक्षक इसे पाश्चात्य सभ्यता का विकास मानते हए इसका विरोध करते है और खुद भी अधिकांश छुप-छुपाकर किसी न किसी रूप में इस उत्साह में शामिल भी हो लेते है।
‘वेलेंटाइन डे‘ को बीमारी की तरह लेने वाले भारतीय संस्कृति के पुजारी कभी भी चीन नेपाल व अन्य के उत्पादों का उपयोग व उपभोग करने से नही कतराते। इन्हें हर वेलेंटाइन के प्रति श्रद्धा रखने वालों में भारतीयं संस्कृति के प्रति खतरा नजर आता है। आखिर वेलेंटाइन से इन्हें कितना नुकसान है कि इनकी भारतीयता व संस्कृति अचानक जाग जाती है। विरोध सिर्फ इसलिए कि मनुष्य भावनात्मक रूप से जुड़ा होता है। यदि मनुष्य अपने अंदर से ‘भावना‘ को निकाल दे क्या स्वस्थ समाज का निर्माण संभव है। शायद नही,इसलिए हर किसी के अंदर भावना का होना लाजमी है। प्राचीन समय में रोम राजाओं का मानना था कि जब मनुष्य परिवार से जुड़ता है तो उसके अन्दर भावनात्मक रिश्ते जड़ बना लेते है और व राजतंत्रका अच्छा सिपाही नही रह जाता।
मतलब साफ था कि मनुष्य केवल सिपाही बना रहे,भावनात्मक रिश्ते से दूर रहे। इसी अन्याय के विरोध में आवाज उठाने का शिकार हुए संत ‘वेलेंटाइन‘। जब उन्होंने ऐसे अन्याय पूर्ण फरमान का विरोध करना शुरू किया और कुछ प्रेमी प्रेमिकाओं‘ की शादी कराकर भावनात्मक रूप से जोड़ने की कोशिश कि तब राजतंत्र को यह पसंद नही आया और 14 फरवरी 270 ई0 को संत वेलेंटाइन को शहीद कर दिया गया।
यें वहीं संत वेलेंटाइन है जिनके याद में 14 फरवरी को वेलेंटाइन डे मनाया जाता है। भारत ही नही बल्कि पूरे विश्व में जिसके अंदर तनिक भी मानवता है वहां बडे ही शिद्दत और दिल दिमाग से याद कियें जाते है और आगे भी याद कियें जाते रहेंगे।
वर्तमान में कुछ लोगो द्वारा वेलेंटाइन-डे के नाम पर अभ्रदता किया जाता है, जिसका विरोध होना चाहिए लेकिन भावनात्मक रूप से जुड़े दिलो पर पहरा शायद अनैतिक होगा। यदि किसी कि याद में दो दिल जुुड़ते है तो जुड़ने चाहिए पर शालीनता व सहमति से।
आज प्यार पर धर्म के ठेकेदारों का पहरा है वही इस प्यार को बाजार भी अपने गिरफ्त में लेने से नही चूकता। पूरा बाजार युवाओं पर इस वेलेंटाइन के बहाने हावी होने पर उतारू है। पूंजी का प्रभाव साफ-साफ दिख रहा है। वो मंहगे गिफट बाज़ार में जिस तरह उपल्बध है इससे तो यही लगता है कि प्यार अब बिकता है। खैर बाजार है तो उत्पादक भी होंगे और उपभोक्ता भी लेकिन प्रेम के इस त्यौहार को बाज़ार के हवाले जाने से रोकना होगा और एक ऐसा प्यार व मोहब्बत के करीब जाना होगा जहां बाज़ार न हो मंहगे गिफट की जरूरत न हो अनिवार्यता न हो शर्त न हो ऐसे प्रेम की जरूरत है जिसमें भावनात्मक और मानवता हो। यह तभी होगा जब हम इस बाज़ारवादी संस्कृति का विरोध करेगें। हमे तो लगता है कि जो धर्म के ठेकेदार वेलेंटाइन डे पर भारतीय संस्कृति के रक्षा के नाम पर तोड़फोड़,प्रेमी प्रेमिकाओं के प्रति अभ्रदता,बदत्तमीजी करके विरोध करते है,उन्हे अपने अन्दर की खत्म हो चुकी भावनात्मक शक्ति व वैचारिकता को पुनः जाग्रत करते हुए इस बाजार के विरोध में आवाज उठानी चाहिए जो सभी पर्वो व अब प्रेम को भी अपने कब्जे में ले रखा है।जब इस पर पहरा लग जायेगा तब प्यार अपने-आप हर घर में आयेगा और किसी एक खास दिन का इन्तजार नही करना होगा प्यार केवल प्रेमी-प्रेमिकाओं का नही बल्कि हर किसी के दिल दिमाग में उपजने वाली बीज है। ऐसे में जरूरत है कि हम अपनी मानसिकता बदले न कि संस्कृति के नाम पर प्यार की जगह नफरत का भाव पैदा करें। आखिर संत वेलेंटान ने भी तो यही किया था आज पूरी दुनिया में इन्हें प्रेम के साथ याद किया जाता है।
आज आवश्यकता इस बात कि है कि प्यार को प्यार ही रहने दिया जाये,बाज़ारवादी ताकतों से बचाया जायें।‘पहरा‘ तो किसी और पर लगाया जाता है न कि दिल दिमाग व भावनात्मक रूप से जुड़े दो दिलों पर। संस्कृति को बचाने के लिए बाजार को हावी होने से रोकना होगा। संत वेलेंटाइन के प्यार का संदेश अब किसी के प्रचार की मोहताज नही है। पूरे सप्ताह चलने वाला यह पर्व संत वेलेंटाइन के शहीद दिवस 14फरवरी को प्यार-मोहब्बत के साथ मनाया जाता है।अंत में कवि डाॅ0 डी0एम मिश्र की चार लाइनें द्रष्टव्य है-
आप की एक झलक देखकर, प्यार वो नजर हो गया।
पांव रखा जहां आपने,हुस्न का वो शहर हो गया ।।
क्या करिश्मा,यें वेलेंटाइन डे का है
एक योगी प्रिये आपका,आज तो हमसफर हो गया।।
"विभूति नारायण ओझा"
14 फरवरी 18
0 Comments