पतहर समाचार, मुज़फ़्फ़रपुर । बाबा साहेब भीमराव अंबेदकर बिहार विश्वविद्यालय मुज़फ़्फ़रपुर के राजकीय डिग्री महाविद्यालय बगहा द्वारा आयोजित सात दिवसीय अन्तर्विषयी अंतरराष्ट्रीय वेब व्याख्यान माला के चौथे दिन "जनसंख्या, पर्यावरण और संस्कृति" विषय पर समाजशास्त्र विभाग, पटना विश्वविद्यालय पटना के आचार्य रघुनंदन शर्मा के व्याख्यान का आयोजन हुआ । कार्यक्रम की शुरुआत सत्र के संयोजक और समाजशास्त्र विभाग के डॉ. रमेश सिंह के अतिथि परिचय और स्वागत वक्तव्य से हुई । विषय प्रवेश करते हुए डॉ. रमेश ने बताया कि जनसंख्या,
पर्यावरण और संस्कृति एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं । किसी में भी परिवर्तन होने से उसका प्रभाव एक दूसरे में दिखाई पड़ने लगता है ।जनसंख्या किसी भी देश के संसाधन के रूप में देखी जाती है लेकिन संसाधन भी अधिक होने से वह समस्या भी उत्पन्न करता है । माल्थस के सिद्धांतों पर चर्चा करते हुए उन्होंने यह भी बताया कि जनसंख्या ज्यामितीय तरीके से बढ़ती है और भरण-पोषण के संसाधन अंकगणितीय रूप में । इसी तरह पर्यावरण की भी बात है आज का मानव प्रकृति पर पूर्णतया विजय प्राप्त करना चाहता है जिसके चलते प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है । वैज्ञानिक उपलब्धियों से मानव प्राकृतिक संतुलन को उपेक्षा की दृष्टि से देख रहा है। दूसरी ओर धरती पर जनसंख्या की निरंतर वृद्धि , औद्योगीकरण एवं शहरीकरण की तीव्र गति से जहाँ प्रकृति के हरे भरे क्षेत्रों को समाप्त किया जा रहा है जिससे दिनोंदिन समस्या गहराती जा रही है ।
आज के सत्र के मुख्य वक्ता प्रो.रघुनंदन शर्मा ने अपने वक्तव्य को माल्थस पर केंद्रित करते हुए कहा कि माल्थस के समय विद्वानों ने उनकी नीति की आलोचना की और उसे "प्रोफेक्ट ऑफ डूम" बताया लेकिन वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए लगता है कि माल्थस एकदम सही थे । माल्थस के आलोचकों का मानना था कि जनसंख्या कोई समस्या नहीं है बल्कि हम तकनीकि के सहारे संसाधन का विकास कर लेंगे । माल्थस के अनुसार जनसंख्या तथा भरण-पोषण के बीच की खाई अधिक चौड़ी होती जाती है तथा भरण-पोषण के साधनों पर जनसंख्या का भार बढ़ता जाता है जिससे पूरा समाज अमीर तथा गरीब दो वर्गों में विभाजित हो जाता है और पूंजीवादी व्यवस्था स्थापित हो जाती है । समाज के समृद्ध लोग जो उत्पादन प्रणाली के स्वामी होते हैं, लाभ कमाते हैं और धन एकत्रित करते हैं परन्तु जीवन स्तर नीचे गिर जाने के भय से अपनी जनसंख्या में वृद्धि नहीं करते । उपभोग में वृद्धि हो जाने से कुछ वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है । माल्थस ने पूंजीवादी समाज तथा पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का इस आधार पर समर्थन किया है कि यदि पूँजी निर्धनों में बाँट दी जाए तो यह पूँजी उत्पादन प्रणाली तथा निवेश के लिए उपलब्ध नहीं होगी । वहीं संस्कृति को परिभाषित करते हुए उन्होंने हॉर्सकोविट को उधृत किया कि ' संस्कृति पर्यावरण का मानव निर्मित भाग है । ' प्रारंभिक समाज प्रकृति पूजक था । पहले आविष्कार आवश्यकता के लिए होता था अब उपभोग के लिए होता है । आज हम सुखांतवादी हो गए हैं । अब हमें गाँधी जी की नीति अपनानी चाहिए और अवश्यकताओं को सीमित करने पर बल देना चाहिए ।
महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो.रवींद्र कुमार चौधरी ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा कि सभ्यता संस्कृति का अंग है । संस्कृति से मानसिक विकास का पता चलता है जबकि सभ्यता का संबंध हमारे भौतिक विकास से होता है । सभ्यता और संस्कृति मानव के बाह्य स्वरूप को दर्शाते हैं । संस्कृति मानव संस्कार से जुड़ी हुई है इसीलिए वह किसी भी सभ्यता का महत्त्वपूर्ण अंग बन जाती है । अगर संस्कृति पर बात करें तो संस्कृति मनुष्य के भूत, भविष्य व वर्तमान जीवन का अपने में पूर्ण विकसित रूप है । साधारणतः संस्कृति शब्द का अर्थ सुधरी हुई और अच्छी स्थिति माना गया है । किसी भी देश,जाति अथवा समुदाय के रहन- सहन या जीवन यापन के तौर तरीके को संस्कृति के नाम से जानते हैं ।मनुष्य अपनी आत्मा की संतुष्टि या आत्म परिष्कार करते हुए जो उन्नति करता है उसे हम साधारण शब्दों में संस्कृति कह सकते हैं । मनुष्य ने धर्म का जो विकास किया है, दर्शनशास्त्र के रूप में जो मनन और चिंतन किया है साहित्य, कला और संगीत में जो सृजन किया, सामाजिक जीवन को सुखी और संपन्न बनाने के लिए जिन प्रथाओं एवं संस्थाओं का जो विकास किया है उन सभी का समावेश संस्कृति में किया जाता है । हिंदी के प्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह दिनकर कहते हैं "अपने जीवन में हम जो संस्कार जमा करते हैं वह भी हमारी संस्कृति का अंश बन जाता है मृत्युपरांत वस्तुओं के साथ-साथ अपनी संस्कृति की विरासत भी अपनी भावी पीढ़ियों के लिए छोड़ जाते हैं ।"
कार्यक्रम का संचालन वेब व्याख्यान माला के आयोजन सचिव और हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ. संदीप कुमार सिंह ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन संयुक्त सचिव डॉ. रेखा श्रीवास्तव द्वारा किया गया । इस अवसर पर राजनीति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष अजय कुमार, मनोविज्ञान विभाग के डॉ. गजेंद्र तिवारी, नेहाल अहमद सहित तमाम प्रतिभागी,शोधार्थी और प्राध्यापकगण उपस्थित रहे ।
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