पतहर

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कोरोना वायरस के सच की पड़ताल


चुंबन दुनिया का सबसे 
घृणित शब्द है 
इन दिनों
स्पर्श दुनिया का सबसे 
ख़ौफ़नाक शब्द

🔘#कोरोना #वायरस #के #सच #की #पड़ताल 
* चन्द्रेश्वर।
कोरोना वायरस(विषाणु) एक वैश्विक महामारी का रूप धारण कर चुका है | यह चीन के वुहान शहर से पूरी दुनिया में फैला है | कुछ जानकारों का मानना है कि यह विषाणु चमगादड़ों से वन्य पशुओं में संक्रमित होते हुए इंसानों तक में पहुँचा है | वे इंसान जो किसी भी पशु-पक्षी का मांस खाते हैं | इसमें ज़रूर सच्चाई नज़र आती है | 
चीन ने अपने वुहान शहर नें इस महामारी के फैलने की ख़बरों को दबाने की तमाम कोशिशें करता रहा है | अब चीन को लेकर पूरी दुनिया तमाम तरह के क़यास लगा रही है | ख़ुद अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कोरोना वायरस को चीनी वायरस कहा है तो चीनी राष्ट्रपति ने प्रतिक्रिया में इसे अमरीकी प्रयोग तक कह दिया है | बहरहाल, मुझे अपने बचपन के दिनों की एक बात याद आती है | शायद सन् 1971-72  के दिनों की बात है | भारत -पाकिस्तान के युद्ध और बंगला देश बनने के बाद की बात है | मेरे गाँव में अक्सर कुछ पढ़े-लिखे लोग आपस में बात करते रहते थे कि दुनिया के संपन्न देश अमरीका या चीन वगैरह एक ऐसा बम बनाने में लगे हैं कि जिसके प्रयोग के बाद पृथ्वी पर सबकुछ यथावत रहेगा ; केवल इंसान नहीं होगा | पशु-पक्षी ,चीज़ें सब सुरक्षित रहेंगी ! बस, इंसान नहीं होगा | कभी-कभी मेरे दिमाग़ में भी यह बात घर करने लगती है कि कहीं ये विषाणु बम का प्रयोग तो नहीं है ? कहीं ये तीसरे विश्वयुद्ध (वर्ल्ड बॉयोवार ) का आगाज़ तो नहीं है ? अब ये संदेह पुष्ट होता नज़र आ रहा है |
इसके आने या फैलने के बाद कई अँग्रेज़ी के शब्द तेज़ रफ़्तार से चलन में आ रहे हैं | ये सारे शब्द नकारात्मक जीवन और सामाजिक स्थितियों के बीच प्रयोग में लाए जाते रहे हैं | मसलन, आइसोलेशन,डिटेन्सन ,सोशल डिस्टेन्सिग,सेल्फ़ क्वारंटाइन आदि | भीड़ से बचने या भीड़ का हिस्सा न बनने की सलाह ; धरना-प्रदर्शन, आंदोलन या पार्टी-समारोहों ,उत्सवों में शामिल न होने की सलाहियत ; ख़ुद अपने-अपने घरों में क़ैद होने की सलाहियत दी जा रही है | पॉजिटिव शब्द उल्टा अर्थ दे रहा है | अगर कोरोना पॉजिटिव है कोई इंसान तो बुरी ख़बर है | अगर कोरोना निगेटिव है तो अच्छी ख़बर है | अब ये कहना कि 'बी पॉजिटिव' --एक अशुभ की तरह लगने लगा है | क्या कहा जाय ! अब तो निगेटिव होने में ही जीवन की रक्षा है | निगेटिव बनिए,ख़ुश रहिए | सिर्फ़ अपनी चिंता रखिए ,अपना ख़्याल रखिए |
सोशल डिस्टेंसिंग को कुछ उत्तर आधुनिकतावादी व अस्मितावादी विमर्शकार - विचारक लोग मनु स्मृति से भी  जोड़कर देख रहे हैं | उनका कहना है कि इस पद के प्रयोग से अनजाने ही नए सिरे से अस्पृश्यता को बढ़ावा मिल सकता है | यह नए सिरे से गाँव में दक्खिन टोले की स्थापना की तरह है | यह वर्ण व्यवस्था को मज़बूती दे सकता है | ठीक इसके बरअक्स कुछ लोग इसे सनातन जीवन पद्धति को  पश्चिमी आधुनिक या वैज्ञानिक जीवन पद्धति से ज़्यादा प्रासंगिक या महत्वपूर्ण मान रहे हैं | कुछलोग इसे भारत को विश्वगुरू बनने के अवसर के रूप में भी देख रहे हैं | उनका कहना है कि अब यह आधुनिक पश्चिमी सभ्यता के अंत का काल है | कोरोना काल ! लॉकडाउन का महाविकट काल |
इधर एक नए पद का अन्वेषण किया गया है-- 'जनता का कर्फ्यू'| जनता पर सरकार कर्फ़्यू नहीं लगायेगी,जनता ख़ुद अपने ऊपर कर्फ़्यू लगायेगी | यह एक नया दौर और नया समय है जिसे कोरोना दौर या कोरोना समय कहा जा सकता है | यह दौर और समय वैश्विक है |
सरकार जनता को मीडिया के दम पर  यह मिथ्या यक़ीन दिलाना चाहती है कि दरअसल सबकुछ पर स्वामित्व जनता का ही है | अमरीकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की पूरे विश्व में बेहद लोकप्रिय लोकतंत्र की परिभाषा कि 'यह जनता का जनता के द्वारा जनता के लिए शासन है' को  प्रासंगिक बनाकर पेश करना क्या एक बड़ा छलावा नहीं  हो सकता है ! आज जबकि जनता सिर्फ़ वोट देने के अधिकार तक ही सीमित है ; बाक़ी चीज़ें सरकार तय कर रही है,आम जनता के व्यापक हितों की अनदेखी करते हुए और जनता का हमदर्द बनने का स्वाँग भी रच रही है , हमारी सरकार का ख़ुद नैतिक दिखना और पब्लिक को ही ज़िमेमेवारी का या नैतिकता का पाठ पढ़ाना कितना सही है ? नैतिकता का पाठ पढ़ाने या नैतिक दिखने से ज्यादा अहमियत रखता है सही समय पर लिया गया सही फ़ैसला | 'का बरखा जब कृषि सुखाने !' इस तिलिस्म को भेदने की ज़रूरत है | कुछ समुदाय के लोग यह भी शक कर रहे हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं कि करोना महामारी की आड़ में अपने राजनीतिक उद्देश्यों को साधने की कोशिश की जा रही हो और हमेशा की तरह मीडिया सरकार के साथ खड़ा हो ! बहरहाल, कोरोना वायरस को लेकर सरकार को एक माह पहले ही लॉकडाउन करना चाहिए था | तब हमारी सरकार ट्रंप के स्वागत में जुटी थी | अब इसे महाभारत युद्ध.से जोड़ना और लक्ष्मण रेखा जैसे पौराणिक पदों से जोड़ना पता नहीं कितना तर्कसम्मत या वैज्ञानिक है ! अगर लक्ष्मण रेखा खींची गई है तो आज का मारीच कौन है ? कोरोना ही आज का रावण है क्या ? पता नहीं,इस महाभारत का कृष्ण और अर्जुन , भीष्म -विदुर ,दुर्योधन या दुःशासन या शकुनी या धृतराष्ट्र या गांधारी या द्रौपदी कौन हैं ? महाभारत युद्ध के अंत की विभीषिका को याद कर मन काँप जा रहा है | इस लेख में हिन्दी के वरिष्ठ आलोचक डॉ.पुरुषोत्तम अग्रवाल की एक फ़ेसबुक पोस्ट को जोड़ रहा हूँ --

🔘" विजय का आख्यान नहीं है महाभारत" ---

" मैंने राज के लोभ में अपने ही बंधु-बांधवों का, कुल का नाश किया, अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु को, द्रौपदी के पुत्रों को खोकर प्राप्त की गयी यह विजय मुझे पराजय सी लगती है, कर्ण हमारा सहोदर भाई था, और माता द्वारा यह बात छिपाने के कारण हमारे ही हाथों मारा गया...जैेसे मांस के लोभी कुत्तों को अशुभ की प्राप्ति होती है, वैसे ही हमें भी अनिष्ट प्राप्त हुआ है, यह मांस तुल्य राज्य हमारा अभीष्ट नहीं है...देवता स्वर्ग से पतित हैं, और ऋषि तप से भ्रष्ट...
जब घरों से धुँआ निकलना बंद होगा, भिखारी भी भीख माँग कर लौट चुके हों, (आशय यह है कि किसी को मुँह तक दिखाना नहीं चाहता) तब मैं भीख माँगने तीन-चार घरों में जाऊँगा...ऐसे ही जीवन गुजार दूंगा..."

ये हैंं महाभारत के अंत में "विजेता" युधिष्ठिर के विशद विलाप के कुछ शब्द! ( शांति-पर्व)

इसके पहले स्त्री-पर्व में गांधारी का विलाप और पांडवों तथा भगवान कृष्ण से उनका संवाद तो और भी कलेजा निचोड़ देने वाला है...

संभव नहीं कि इन अंशों को आप बिना आँसू बहाये और युद्ध की विभीषिका पर विचलित हुए बिना पढ़ सकें...

बहुत सोबरिंग अनुभव है महाभारत को पढ़ना- समझना...

उसे विजय का आख्यान मानना भारतीय मेधा का अपमान करना है...

महाभारत विजय का आख्यान नहीं, हिंसा-अहिंसा, धर्म-अधर्म पर बहुत मार्मिक विमर्श है. 

इसीलिए भारतीय काव्य-चिंतन की परंपरा इसे काव्य भी मानती है और शा्स्त्र भी.

इसका उल्लेख उचित संवेदना और सावचेती के साथ ही करना चाहिए."
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वैसे अब कोरोना को लेकर एक तरह का मवोवैज्ञानिक भय भी काम करने लगा है | इसकी ज़द में शहरी मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग ज़्यादा है | यह वर्ग घरों में माह-दो माह का राशन-पानी जमाकर 'सरवाइव' कर लेगा ; लेकिन निम्न वर्ग के सामने ज़्यादा गंभीर चुनौती होगी जो रोज़ मेहनत-मज़दूरी कर अपना जीवन -यापन करता है | कल जब किसी बेहद ज़रूरी काम से लखनऊ जैसे शहर में घर से बाहर निकला तो देखा कि कई चौराहों पर जहाँ ट्रैफिक होती है,भीख माँगने वाली किशोर ,युवा लड़िकियों और औरतों की अच्छी तादाद थी | शायद जिनको कोरोना के बारे में कोई जानकारी नहीं रही होगी या वे कोरोना जैसी महामारी के खौफ़ से बाहर थीं | अब तो पूरे देश मे लॉकडाउन की घोषणा के बाद  मुंबई ,दिल्ली या अहमदाबाद जैसे महानगरों से दिहाड़ी पर काम करने गए मज़दूर अपने गाँवों के लिए पैदल कूच कर चुके हैं | वे जगह-जगह पुलिस से प्रताड़ित भी हो रहे हैं | वे तीन-तीन दिन से भूखे हैं | अभी मेरी बातचीत एक रिटायर्ड प्रोफेसर से हुई जो इन दिनों गाँव पर हैं | उनका कहना था कि गाँव पर भी कोरोना का नाम सब बच्चे ले तो रहे हैं पर इसका खौफ़ किसी पर नहीं है | यहाँ कोई खेत में सरसों काट रहा है तो कोई खलिहान साफ़ कर रहा है | तो कोई गन्ने की बुवाई करा रहा है | वे बोले कि अगर आप मेरे गाँव आते तो आपको शुद्ध गाय का दूध पिलाता | बहरहाल,शहरों में विशेषकर बड़े शहरों में  लोग इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के प्रभाव में हैं | अख़बार का घरों में आना लगभग बंद ही हो चुका है | वैसे  मध्यवर्ग  कोरोना महामारी से ज़्यादा डरा हुआ है |  उसको अपने सुखों के छिनने का डर कुछ ज़्यादा ही सता रहा है | यह वही वर्ग है जिसके बारे में हिन्दी के एक बड़े कवि मुक्तिबोध ने अपनी लंबी कविता 'अँधेरे में' में लिखा है कि 'बहुत-बहुत ज़्यादा लिया/दिया बहुत कम / अरे,मर गया देश/जीवित रह गए तुम /'! यह वही वर्ग है जो स्वार्थों के टेरियर कुत्ते पालता है | बहरहाल,केरोना पर मेरी एक कविता भी नीचे दी जा रही है --

🔘🔘#चुंबन #दुनिया #का #सबसे #घृणित #शब्द #है #इन #दिनों 

रुपये छूना मना
सिक्के छूना मना
कोई सामान छूना मना
आदमी का आदमी को छूना मना

ख़ुद की हथेलियों से भी चेहरा ढकना मना
ख़ुद की उँगलियों से नाक,आँख,कान एवं 
होंठ छूना मना

चुंबन दुनिया का सबसे 
घृणित शब्द है 
इन दिनों
स्पर्श दुनिया का सबसे 
ख़ौफ़नाक शब्द 

सामाजिक दूरी का पालन करने वाले
एकांतवास करने वाले ही 
ज़िंदा बचेंगे अब
सामाजिकता या सामूहिकता अभिशाप है
मानवता के लिए
इन दिनों

कोरोना वायरस से दुनिया भर में 
फैली महामारी ने
कुछ सनातनी  लोगों की नज़र में
'मनुस्मृति' और वर्णव्यवस्था को बना दिया है 
नए सिरे से प्रासंगिक

कुछ लोग कोरोना महामारी से 
ख़ौफ़ज़दा नहीं 
तनिक भी
वे ख़ुश हैं कि सनातनी परंपरा की धारा
हो उठेगी बलवती
वे ख़ुश हैं कि दिल्ली और देश के नक्शे में 
कोढ़ में खाज़ की तरह दिखता
शाहीन बाग ख़ाली करा लिया गया है

वे ख़ुश हैं कि दो हज़ार पच्चीस तक 
बन जायेगा भारत
विश्वगुरु

वे ख़ुश हैं कि दुनिया के सबसे ताक़तवर राष्ट्रपति 
डोनाल्ड ट्रंप ने शुरू कर दिया है
'नमस्ते' करना
वे ख़ुश हैं कि दुनिया के सबसे अमीर देश 
अमरीका के व्हाइट्स हाउस में 
कोरोना वायरस के डर से
पढा़ जा रहा है वैदिक मंत्र

वे ख़ुश हैं कि आधुनिकता का 
पराजय काल है यह
वे ख़ुश हैं कि मानव सभ्यता 
पुनः लौट जायेगी
आदिम और बर्बर युग में
जहाँ मनुष्य नहीं रह जायेगा
सामाजिक प्राणी

वे ख़ुश हैं कि अब सब घर के अंदर होंगे
उनके सारे मुद्दों एवं सवालों को भी 
मार डालेगा
एक कोरोना वायरस का ख़ौफ़. !

🔘 चंद्रेश्वर ,हिन्दी विभागाध्यक्ष 
एम.एल.के.पी.जी.कॉलेज,बलरामपुर