देवरिया। वरिष्ठ साहित्यकार व कवि रहे ध्रुवदेव मिश्र पाषाण का निधन साहित्य जगत के लिए एक युग का अवसान है। पाषाण जी के अचानक चले जाने से न सिर्फ देवरिया बल्कि देशभर में साहित्य समाज की गहरी क्षति हुई है। मंगलवार की सुबह पाषाण जी का निधन हो गया, निधन की खबर सुनते ही उनको जानने वालों में शोक की लहर दौड़ गयी।
उनके पत्रकार पुत्र वाचस्पति मिश्र ने इसकी पुष्टि फेसबुक पोस्ट के माध्यम से की। वे लगभग 87 वर्ष के थे और अपने पुत्र के साथ ध्रुवधाम, देवरिया में ही रहते थे। मूल रूप से इमिलियां, भटनी के रहने वाले पाषाण कलकत्ता में रहे। सेवा से निवृत्त होने के बाद देवरिया आ गये। उनके देवरिया वापस आने पर जनपद में साहित्य जगत को मजबूती मिली थी। स्व. पाषाण कवि साहित्यकार के साथ पत्रकार व संपादक भी रहे। पतहर पत्रिका ने पिछले वर्षों उन पर एक विशेषांक भी प्रकाशित किया था।
साहित्यिक पत्रिका पतहर की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में वरिष्ठ जनकवि पाषाण जी के निधन पर गहरा दुःख व्यक्त किया गया है। पत्रिका की तरफ से शोक व्यक्त करते हुए स्वर्गीय पाषाण जी को एक संकल्पधर्मी व प्रतिबद्ध रचनाकार बताया गया है तथा उनके निधन को साहित्य जगत की अपूरणीय क्षति बताते हुए विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की गयी है। ध्रुवदेव मिश्र पाषाण का जाना साहित्य जगत के लिए बड़ी कमी का एहसास करायेगा। वे केवल जनवादी रचनाकार ही नहीं बल्कि एक मानवीय इंसान भी थे। उनसे मिलना अपनों से मिलने जैसा होता था। जीवन के अंतिम समय में भी उनकी रचना सक्रियता वर्षों तक याद आयेगी। ध्रुवदेव जी वास्तव में पाषाण थे, अपनी कलम की ताकत से ना जाने कितनों को हिला दिया। उनका निधन उनकी पीढ़ी के एक युग का अंत है। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।
चक्रपाणि ओझा ने उनकी कविता का उल्लेख करते हुए लिखा कि .....
कविता तुम्हारा जन्म
मेघान्धकार में बिजली की कौंध है
मगर कविता
यह सब सिर्फ तब है
जब
तुम आदमी के लिए हो
कविता तुम्हारी उम्र
आदमी की उम्र है
तुम आदमी से बड़ी नहीं हो। (पाषाण जी)
अभी दो दिन पहले ही फेसबुक पेज पर पाषाण जी से संवाद हुआ था। आज सुबह खबर मिली की वे नहीं रहे! यह सूचना अविश्वसनीय लग रही थी लेकिन सूचना लिखने वाले उनके पुत्र वाचस्पति जी ही थे। ऐसे में इस दु:खद सच को मानना ही पडा है!
पाषाण जी के जाने के साथ साहित्य की दुनिया के एक युग का अवसान हो गया है।पाषाण जी का जीवन प्रेरणा दायक रहा है। हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास में पाषाण जी का भी नाम दर्ज किया जाना चाहिए। साहित्यकार और कवि होने से पूर्व उन्होंने "देवरिया टाइम्स" साप्ताहिक पत्र निकालने का काम किया था। इस महान काम के लिए उन्होंने अपना बाग और जमीन भी बेंच दिया था। इस तथ्य से साहित्य और पत्रकारिता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को हम देख सकते हैं। बाद में कोलकाता में साहित्य और अध्यापन कार्य में संलग्न रहने वाले पाषाण जी हिंदी के कई बड़े और महान साहित्यकारों के समकालीन रहे हैं। उनसे उनके पत्राचार होते रहे हैं।अपने समय में कई लाभदायक अवसरों को उन्होंने ठुकराने का भी काम किया था।
पाषाण जी एक जनपक्षधर, प्रगतिशील व परिवर्तनकामी चेतना के बड़े कवि के रूप हमेशा याद किये जाएंगे। वे संघर्ष और प्रतिरोध के प्रतिबद्ध कवि रहे हैं।अब जरूरत इस बात की है कि उनकी रचनाओं को पढ़ने का काम हो। उनके रचना संसार से आम पाठकों को परिचित कराया जाय। यही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी। स्मृतिशेष पाषाण जी को विनम्र श्रद्धांजलि!!
फेसबुक पर कलकत्ता से हितेन्द्र पटेल ने शोक व्यक्त करते हुए लिखा कि कोलकाता के हिंदी भाषी समाज के सबसे उल्लेखनीय कवि श्री ध्रुवदेव मिश्र पाषाण ( जन्म १९३९) के देहावसान की खबर बहुत ही दुखदाई है। एक बड़ी क्षति। व्यक्तिगत रूप से मेरे मन में उनके प्रति सदैव श्रद्धा ही रही। उनका स्नेह हम दोनों को भरपूर मिला। रूपा गुप्ता को तो वे हमेशा बेटी ही कहते रहे। रूपा के निर्देशन में उनके जीवन पर नीरज सिंह ने एक शोध कार्य भी किया जिसे प्रकाशित भी किया गया। जीवन के अंतिम वर्षों में वे अपने गांव देवरिया में रहने लगे थे, लेकिन उनका सक्रिय जीवन यहीं कोलकाता में ही बीता। अफसोस कि उनसे मिलने देवरिया नहीं जा सका। उनसे फोन पर बातें होती थी बीच बीच में। उनकी फेसबुक पर उपस्थिति भी नियमित थी। मेरी श्रद्धांजलि।
आनंद गुप्ता ने लिखा कि जनवादी कवि ध्रुवदेव मिश्र पाषाण जी नहीं रहें। कोलकाता से कविता की पुरानी पीढ़ी का एक मजबूत स्तंभ आज ढह गया। उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि।
ओम परीक ने लिखा कि जनवादी कवि ध्रुवदेव मिश्र 'पाषाण' जी नहीं रहे। वामपंथी विचारों के कर्मठ जन कवि के जाने से साहित्य जगत को बड़ी क्षति !! जब तक कलकत्ता में थे हमारे सभी नाटक देखे !घर जाकर घंटो उनसे साहित्य एवं नाट्य चर्चा करता था !!स्पष्ट और बेबाक हस्ती थे !! विनम्र श्रद्धांजलि।
राजकुमार गुप्त ने अपने संदेश में लिखा कि स्कूली जीवन में हमारे हिंदी के शिक्षक प्रिय कविजी, रचनाकार, क्रांतिकारी, प्रगतिशील विचारधारा के प्रमुख कवि ध्रुवदेव मिश्र पाषाण जी का जाना भारतीय साहित्य जगत में ऐसी रिक्ति उत्पन्न कर गया है जिसकी भरपाई असम्भव है। ईश्वर उनकी आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान एवं परिजनों को धैर्य प्रदान करें, ॐ शान्ति..
28 जनवरी 2022 को उनके हावड़ा स्थित निवास पर मैं भाई विनय कुमार के साथ मिलने गया था, उनसे जुड़ी यादें, नि:शब्द हूं अंतिम प्रणाम 🙏।
डॉ चतुरानन ओझा ने सूचना साझा करते हुए लिखा कि
दुखद!
नहीं रहे हिंदी के वरिष्ठ कवि ध्रुव देव मिश्र "पाषाण" जी। उनके छोटे बेटे और दैनिक हिंदुस्तान अखबार के जिला प्रभारी वाचस्पति मिश्र के देवरिया स्थित आवास पर हुआ निधन।क्रांतिकारी कवि ध्रुवदेव मिश्र पाषाण जी हिंदी साहित्य के प्रगतिशील धारा के कवियों की अपनी पीढ़ी के सर्वाधिक महत्वपूर्ण कवि के रूप में याद किए जाएंगे। उनको विनम्र श्रद्धांजलि, लाल सलाम।
प्रोफेसर चंद्रेश्वर ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपनी यादें साझा की, उन्होंने लिखा
हमारी विनम्र श्रद्धांजलि!अंतिम प्रणाम!
नहीं रहे प्रख्यात हिन्दी कवि ध्रुवदेव मिश्र 'पाषाण'
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कवि ध्रुवदेव मिश्र 'पाषाण' के नाम को सबसे पहले डॉ. चंद्रभूषण तिवारी की पत्रिका 'वाम' के किसी अंक में देखा-पढ़ा था। डॉ.तिवारी ने सन् सत्तर से सन् चौहत्तर के भीतर 'वाम' के तीन अंकों का संपादन किया था। मैं जब सन् 1980-81 में आरा शहर में तिवारी जी के सानिध्य में आया तो उन्होंने मुझे 'वाम' के तीनों अंकों की प्रतियाँ उपहारस्वरूप पढ़ने के लिए दी थी; साथ में कम्युनिस्ट पार्टी का मेनिफेस्टो भी दिया था । तब मैं जैन कॉलेज,आरा में बी.ए.हिन्दी (ऑनर्स)प्रथम वर्ष का छात्र था। वाम' के इन अंकों में मैंने पहली बार 'पाषाण' जी की लंबी पाठकीय चिट्ठी और कुछ कविताएँ भी पढ़ी थी।
बाद में वर्ष 1997 में कोलकाता के साल्ट लेक में जब 'जनवादी लेखक संघ' का पाँचवाँ राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ तो मैंने बलरामपुर से उसमें शिरकत की थी। तब मैं बलरामपुर के पोस्ट ग्रेजुएट कालेज में प्राध्यापक बन गया था। मैंने पहली बार उसी सम्मेलन में 'पाषाण जी' का साक्षात् दर्शन किया था। उनसे रूबरू होने का एक अच्छा अवसर मुझे मिला था। वे उस सम्मेलन के मुख्य वरिष्ठ कार्यकर्ताओं में से एक थे। उनको ही पहले दिन शाम में आयोजित काव्य गोष्ठी का संचालन करना था। कविता पाठ करने वाले नए-पुराने कवियों की लंबी सूची थी, 'पाषाण' जी के पास। जब मैंने अपना नाम एक पर्ची पर लिखकर 'पाषाण जी' को देने की कोशिश की थी तो वे चिढ़ से गए थे। फिर मैंने दुबारा उनसे संपर्क की कोशिश नहीं की थी और देर रात तक उनके संचालकत्व में चल रही काव्य गोष्ठी का भरपूर आनंद लिया था । मेरे दिलो-दिमाग़ में उनकी जो छवि बनी थी,वह एक अतिशय मुखर और निष्ठावान प्रतिबद्ध वामपंथी धारा के एक कवि के रूप में थी। एक हार्डकोर कम्युनिस्ट के रूप में। 'पाषाण' जी की कर्मभूमि था कोलकाता शहर। वैसे वे हावड़ा में रहते थे। वे मूलनिवासी थे पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद के इमलिया गाँव के। वे कुछ वर्ष पहले शिक्षक की नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद अपने गृहनगर और जनपद देवरिया में लौट आए थे। सन् 2018-19 में जब 'पतहर'(संपादक -- विभूति नारायण ओझा) में प्रकाशित मेरी दो कविताओं -- ' पूरब के हैं हम' और 'कुछ बातें यूँ ही' को पढ़कर उन्होंने मेरे पास फोन किया था तो सहसा यक़ीन नहीं हुआ था कि ये वो ही पाषाण जी हैं जो सन् 1997 में कोलकाता में मिले थे। मैं उनके मुख से अपनी दोनों कविताओं की तारीफ़ सुनकर बहुत ही उत्साहित एवं गदगद हुआ था। वे निरंतर मुझे फोन कर मेरा हालचाल लेते रहते थे। वे कहते थे कि तुमसे मैं बहुत ही अपनत्व महसूस करता हूँ। तुमसे बहुत उम्मीदें हैं। इधर मैं जान पाया था उनके बारे में कि #पाषाण तो उनका एक उपनाम का आवरण भर था । वे अंदर से कोमल भावों और व्यवहार वाले स्नेहिल इंसान हैं | वे वामपंथी होते हुए भी परंपरा एवं
लोकसंस्कृति के मूल्यवान पक्षों को साथ लेकर चलने वाले कवि थे। वे अक्सर मोबाइल से बात करने पर कहते थे कि उन्हें गिरोहबंदी से सख़्त परहेज़ है। वे मुक्तिबोध और नागार्जुन के साथ अज्ञेय को भी महत्व देते थे। वे डॉ.रामविलास शर्मा की आलोचना और उनके गद्य को बार-बार पढ़ने की सलाह देते थे। वे वरिष्ठ कवि-आलोचक अशोक वाजपेयी की आज की भूमिका की भी सराहना करते थे। उन जैसे अस्सी पार प्रतिरोध की धारा के बुजुर्ग कवि -चिंतक का निःश्चल प्यार मेरे लिए निजी तौर पर भी विशेष मायने रखता था। इधर वे फ़ेसबुक पर भी बहुत सक्रिय थे। वे बराबर अपना स्टेटस अपडेट करते रहते थे। वे काग़ज़ पर हाथ से लिखकर उसे स्कैन कर या कराकर अपने टाइमलाइन पर डालते रहते थे। वे कभी कविता तो कभी टिप्पणी डालते रहते थे। वे कविता एवं गद्य दोनों में साफ़-बेबाक और पारदर्शी भाषा को बरतते के हिमायती थे। वे इधर अपने गाँव इमलिया के बचपन के दोस्तों के संग की तस्वीरें भी साझा कर रहे थे। साहित्य में उनकी वैचारिकी के
निर्माण में न सिर्फ़ कार्ल मार्क्स-लेनिन;बल्किकबीर,तुलसी,गांधी ,अम्बेडकर, लोहिया की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी। वे कुलमिलाकर देशज ठाट और सरल-सहज सोच के कवि थे। मैंने कई बार सोचा कि उनसे देवरिया जाकर मिलूं,पर मेरी यह इच्छा अधूरी ही रह गई। वे इधर हाथ से लिखकर मेरे बारे में एक टिप्पणी फेसबुक पर डाले थे। मैंने अपना एक अभिभावक और वरिष्ठ साथी हमेशा के लिए खो दिया है। उनको हमारी विनम्र श्रद्धांजलि और अंतिम प्रणाम।
देवरिया नागरी प्रचारिणी सभा के मंत्री और पाषाण जी के रोज मिलने वाले इन्द्र कुमार दीक्षित ने लिखा कि साहित्य में मनुष्यता की प्रतिष्ठा के लिये संघर्षरत कवि ध्रुवदेव मिश्र 'पाषाण' नहीं रहे। आगे विस्तार से लिखा कि प्रगतिशील विचारों वाले वाम चिंतनधारा के प्रमुख कवि ध्रुव देव मिश्र 'पाषाण' जी का आज सुबह नौ बजे के करीब उनके कनिष्ठ पुत्र वाचस्पति मिश्र ब्यूरो चीफ हिंदुस्तान दैनिक के सी सी रोड देवरिया स्थित आवास 'ध्रुव- धाम' पर आकस्मिक निधन हो गया। अभी परसों मैं और मोती बी ए जी के सुपुत्र अंजनी कुमार उपाध्याय उनसे मिलने गए तो अंकवार मे भर लिये और बोले कि 'दो महीने बाद मिलना हो रहा है,दीक्षित! देखिये आते रहियेगा और सभी मित्रों से मेरा प्रणाम कहिएगा।' मानों उन्हें कुछ अहसास हो गया हो, बोलते हुए उनकी साँस फूल रही थी, लेकिन उसके बावजूद उन्होंने अपनी लम्बी कविता जो उनके अन्तिम काव्य संकलन 'सरगम के सुर साधे' से 'पानीनामा' हम लोगो को पूरी की पूरी टार्च की रोशनी में पढकर सुनाया।कविवर मोती बीए जी की कविता जो उन्होने 'देवरिया टाइम्स ' अखबार में सन 64 में छापा था ' जिन हाथों में शक्ति भरी है राज तिलक देने की उन्हीं--- सर उतार लेने की' सुनाते हुए भावुक हो उठे। हमको देखकर अक्सर भावुक हो जाते थे और सभी साहित्यकारों का नाम ले लेकर उनका हाल चाल पूछते,उनके बारे में संस्मरण सुनाते थे।नागरी प्रचारिणी सभा पर विशेष स्नेह रहता था उनका!
कोलकाता की अपनी कर्म भूमि और वहां के साहित्यकारों को याद करते हुए स्मृतियों में डूब जाया करते थे, अज्ञेय, राम विलास शर्मा मुक्ति बोध, बाबा नागार्जुन, कल्याण मल लोढ़ा, नवल, राजकुमार पाण्डेय,नामवर सिंह, प्रभाकर श्रोत्रिय,शंभूनाथ और न जाने कितने लोगों के साथ के संस्मरणों ,पत्रों का जिक्र उनके जुबान पर होता था।उनसे मिलना माने साहित्य की प्रवहमान धारा में उनके साथ बहने जैसा अहसास देता था। आज उनका न रहना बहुत बड़ा खालीपन दे गया है,इतनी आत्मीयता तरलता और बड़े साहित्यकारों के प्रति सम्म्मान तथा नवयुवकों के लिये स्नेह का भाव मैने किसी साहित्यकार में नहीं देखा। उनकी बातों में साहित्य की अनंत यात्रा होती थी,मुझे तो उनका न रहना भीतर से मानों बेचैन कर रहा है।भगवान से प्रार्थना कि उन्हें अपने चरणों में स्थान दे,और परिजनों को इस दुख को सहन करने का साहस!साहित्य के उज्ज्वल नक्षत्र 'पाषाण' जी को विनम्र श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ। ॐ शांति!!!पाषाण जी के असामयिक निधन से साहित्य जगत शोकाकुल है।
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