यह प्रेम ही राम को राजा बनने से रोक देता है।राम इसलिए नायक हैं क्योंकि उनका यह प्रश्न समाज के लिए एक नैतिक अवधारणा को गढ़ने वाला है।भक्तिकाल ऐसे गहरे सवाल पैदा करती है जो ईश्वर को फिर से खोजने को प्रेरित करती है।
संवाददाता,गोरखपुर। भक्तिकाल की कविता अपने भावों और प्रेम को परमात्मा के समक्ष व्यक्त करने के लिए लिखी गई।इसने मुख्यरूप से लोकतातन्त्रिकता की स्थापना,ईश्वर की अनेकरूपता और सामाजिक समानता की अवधारणा को स्थापित करने में मुख्य भूमिका निभाई।यह कविता कथनी और करनी की एकता का संदेश देती है।भक्ति काल का प्रभाव आधुनिक काल में भी देखा जा सकता है,रामराज्य की परिकल्पना इसका सटीक उदाहरण है। इसने बताया कि कृतज्ञता का मूल्य बहुत बड़ा है।
भक्तिकाल उसी तरह का मूल्य निर्धारण करती है, जिस तरह का मूल्य स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों ने स्थापित किया।इसकी चार धारा ज्ञान मार्गी निर्गुण धारा,प्रेम मार्गी निर्गुण धारा,राम भक्ति शाखा,कृष्ण भक्ति शाखा है।भक्ति काल का आरंभ पूर्व मध्यकाल से माना जाता है। कबीरदास,मीराबाई, सहजोबाई,सूरदास,मालिक मोहम्मद जायसी आदि इसके प्रमुख कवि हैं।।सूरदास और कबीर दास ने अपने हाथों से कुछ नहीं लिखा।भक्तिकाल में ज्यादातर कबि बहुत पढ़े लिखे नहीं थे,लेकिन वो परमतत्व,ब्रह्म,कृतज्ञता, माया,धर्म के बारे गूढ़ ज्ञान रखते थे। यहां अनपढ़ भी दर्शन की इस मूल बात को जनता है कि जीवतत्व तो परमतत्व का अंश है,माया को समझता है,आत्मा अजर अमर है।यह बात इस देश का आम आदमी जानता है तो इसका बहुत बड़ा कारण भक्ति काल का काव्य है।भक्ति काल की कविता कर्मकाण्डों का निषेध करने वाली कविता है।
उपरोक्त बातें दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो चित्तरंजन मिश्र ने कहीं।प्रो.मिश्र शहीद बंधू सिंह डिग्री कॉलेज में चल रहे व्यख्यानमाला के तीसरे दिन हिंदी विभाग द्वारा आयोजित " भारतीय समाज पर भक्ति काव्य का प्रभाव " विषय पर अपने विचार रख रहे थे।
उन्होंने कहा कि रामानन्द की कविता जात पातपूछे नही कोई हरि के भजे सो हरि के होई से स्पष्ठ होता है कि मनुष्य ईश्वर की संतान है,और ईश्वर एक है। मध्यकाल में ज्ञानमार्गी निर्गुण कवियों की कविता गोरखनाथ की वाणी है जो भक्ति काल के केंद्र में है। जहाँ स्पष्ट दिखता है कि गांव के लोगों का मन साफ है,उनके अंदर जाति, धर्म और संप्रदाय, छुआछूत की भावना नहीं है तो इसमें कबीर की कविताओं का बहुत महत्व है।प्रेम का मूल्य भक्ति काल कि कविता से आया। उन्होंने स्पष्ट किया कि भक्ति काल की कविता का केंद्रीय सरोकार प्रेम है। यहाँ ज्ञान की आंधी में वर्षा प्रेम की होती है।ज्ञान की आंधी प्रेम की बूंदों से समाप्त होती है।
कबीर यह घर प्रेम का खाला का घर नही,सिष उतारो भुई धरो तब पैठ घर माहि का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि शीश उतारना मतलब अहंकार को हटाकर आराधना करना।यहां भक्त भी भगवान है। स्पष्ट है भगवान अलग से कोई सत्ता नही है। इसका दृष्टान्त है की भगवान से प्रेम करने वाला भक्त भी भगवान हो सकता है।सगुण भक्ति में भगवान का भक्त होने के नाते ही हनुमान की पूजा होती है।
भक्त और भगवान के बीच का फर्क प्रेम मिटाता है,और भक्त को भगवान की तरह पूज्य बनने की प्रेरणा देता है।प्रेम की स्थापना की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि भक्ति काल मे कहा गया कि पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोई,ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।
प्रेम कभी पूर्ण नही होता,पूर्ण होते ही यह समाप्त होने लगता है।प्रेम का पौधा इतना कोमल होता है कि उसे जैसे ही बाहर की हवा लगती है वह मुरझा जाता है।प्रेम हृदय में ही पुष्पित और पल्लवित होता है।जायसी की कविता प्रेम मार्गी कविता है।
पुराण और उपनिषदों से भी महत्वपूर्ण भक्तिकाल की कविता है।जायसी पहले ऐसे कवि हैं जिहोंने ईश्वर को स्त्री के रूप से देखा।उन्होंने यह पुष्ट किया कि ईश्वर स्त्री रूप में भी हो सकता है। उनकी नायिका पद्मावती है।भक्तिकाल की कविता ने भारतीय समाज को लोकतांत्रिक स्वरूप दिया। क्योंकि भक्ति काल की कविता में ईश्वर का कोई एक रूप नहीं है।भारतीय समाज की लोकतांन्त्रिकता में ईश्वर का कोई एक रूप नहीं है, कबीर,सूर,तुलसी,जायसी के ईश्वर में एकरूपता नहीं है।यह लोकतांत्रिकता तथा प्रेम की विराटता और उदारता और सहिष्णुता के बिना संभव नहीं है।प्रेम परस्पर आदर का भाव जागृत करता है।गोपियों,उद्दव,तुलसी,और कबीर के आराध्य अलग है।राम और कृष्ण अलग, यहाँ निर्गुण राम,राम का इनकार और स्वीकार भी है।
कबीर के राम अलग हैं।वे राम के व्यक्तित्व का पुनराविष्कर अलग ढंग से करते हैं।जबकि तुलसी के राम दशरथ नंदन है।इसमें भाइयो के प्रेम का समाज है जिसमें घर का वृद्ध घर मे बेटो के साथ परन्तु समाज में अपने भाई के साथ खड़ा दिखता है,अब भी खड़ा होना चाहता है।
जिसके मन मे राम की तरह प्रश्न पैदा नहीं होता वह राम नही है। तुलसी के राम स्वयं कहते हैं कि एक संग जन्मे सब भाई,विमल वंश यहअनुचित एकु,बंधु विहाई बड़हि अभिषेकू।
हर आदमी को अपने वंश परम्परा का गर्व होना चाहिए,यह प्रश्न ही राम को राम बनाता है।यह लोकतंत्र है।यह प्रश्न राम के मन मे पैदा होता है,यह भाइयों के प्रति प्रेम का अनूठा उदाहरण है।यह वही प्रेम है जो जायसी की कविता में पद्मावती के लिए तथा सूरदास का कृष्ण के लिए है।
यह प्रेम ही राम को राजा बनने से रोक देता है।राम इसलिए नायक हैं क्योंकि उनका यह प्रश्न समाज के लिए एक नैतिक अवधारणा को गढ़ने वाला है।भक्तिकाल ऐसे गहरे सवाल पैदा करती है जो ईश्वर को फिर से खोजने को प्रेरित करती है।
राम महल में जबकि कृष्ण जेल में पैदा होते है। वह आगे कहते हैं कि "धूलि भरि अति सोभित कृष्ण" कृष्ण इसलिए सुंदर है क्योंकि उनको गांव की एक सामान्य स्त्री छाछ पर नाचने को विवश कर देती है।"छछिया पर नाच नचावे"।कृष्ण को पूर्णावतार कहा जाता है।वह अवतार गाय चराता है,माखन चुराता है,गोवर्धन उठाता है,कंस का वध भी करता है,गोपियों के ताने भी सुनता है,रणछोड़ भी कहा जाता है।
400 साल पहले का कवि राजनीति के छलिये अवतार का चरित्र समझता है।तब उस समय का कवि कहता है कि हरि ने राजनीति पढ़ी आये।गोपियों का प्रेम अहैतुक प्रेम है।उद्धव आगमन के समय ज्ञान और भक्ति का अद्भुत प्रसंग है।सूरदास की नायिका राधा का प्रेम स्वाभिमान का प्रतीक है।वह प्रेम अपने नही,ईश्वर के अधूरेपन को पूरा करने वाला प्रेम है।सुरसाहित्य में आचार्य द्विवेदी जी कहते है इतनी विनती सुनहु हमारी,बारक हु पतिया लिखी दीजै....एक बार आवन ब्रज कीजै।यह भक्ति में लीन एक भक्त की करुण पुकार है।
वह बताते हैं कि शुक्ल जी के अनुसार धर्म के तीन अंग है,कर्म ज्ञान और भक्ति । कर्म के बिना ज्ञान लूला लगड़ा, ज्ञान के बिना अंधा,और भक्ति के बिना क्रूर हो जाता है।
इसलिए भक्ति काल की कविता धर्म की रक्षा करने वाली कविता नही है,उसमे अपने को विलीन कर देने वाली कविता है। यह निरक्षर और अशिक्षित का भेद बताती है।क्योंकि भक्ति काल का कवि निरक्षर तो है परंतु सामान्य से कई गुना ज्यादा शिक्षित है।
इस अवसर पर सभी शिक्षकों व विद्यार्थियों की उपस्थिति रही।अतिथि का स्वागत एवं आभार ज्ञापन महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ.यू. पी.सिंह तथा कार्यक्रम का संचालन डॉ. अनिल कुमार सिंह ने किया।
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