पतहर

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कालिदास देशांतर और भाषांतर के कवि : प्रो. अनिल

पतहर, गोरखपुर। कालिदास के साहित्य का अंतः शास्त्रीय विमर्श विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी के द्वितीय तकनीकी सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर हरीश्वर दीक्षित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी ने की ।अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रोफेसर दीक्षित ने कहा कि कालिदास के साहित्य में अनेक वैदिक संदर्भ दिखाई पड़ते हैं। मुख्य वक्ता  प्रो० रीता त्रिपाठी ने कहा कि कालिदास के प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। विशिष्ट वक्ता के रूप में डॉ० योगेन्द्र तिवारी, डॉ मीनाक्षी जोशी आदि ने अपने विचार रखे।


 

समापन- सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर अनिल राय पूर्व अध्यक्ष हिंदी विभाग दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर ने कहा कि 'अंग्रेजी विद्वानों ने भी सम्मान के साथ  कालिदास को स्वीकार्य किया है।समापन - सत्र के अध्यक्षीय वक्तव्य में हिन्दी विभाग के प्रो अनिल कुमार राय ने कहा कि  कालिदास देशांतर और भाषांतर के कवि हैं । उनकी रचनाओं ने संस्कृत में रचे जाने के बाद अपने देश - काल और भाषा की सीमाओं का अतिक्रमण किया है और उन्हें संसार की अनेक दूसरी भाषाओं में सम्मान के साथ स्वीकार किया गया है । कालिदास के साहित्य को आज वैश्विक नागरिकता मिल चुकी है ।


 हिन्दी के साथ कालिदास के सम्बन्ध की चर्चा करते हुए प्रो राय का कहना था कालिदास का हिन्दी अनुवाद तो हुआ ही है , उनके साहित्य के प्रभाव में  कविता , नाटक और कथा - साहित्य  के  क्षेत्र में मौलिक सृजन का भी वातावरण बना है । कालिदास के साहित्य के प्रति महावीर प्रसाद द्विवेदी , हजारी प्रसाद द्विवेदी और रामविलास शर्मा के दृष्टिकोण के बहाने हिन्दी आलोचना के व्यवहार के विविध रूपों पर उन्होंने विस्तार से प्रकाश डाला और बताया कि कालिदास के वस्तुपरक मूल्यांकन के लिए केवल साहित्य की सीमा से बाहर  निकलकर हमें अंतःशास्त्रीय विमर्शों की दुनिया में प्रवेश करना पड़ेगा ।


  मुख्य अतिथि के रूप में प्रोफेसर जितेंद्र श्रीवास्तव निदेशक अंतरराष्ट्रीय विभाग इग्नू नई दिल्ली ने कहा कि ने कहा कि कालिदास भारत के ही नहीं अपितु विश्व कवि हैं। प्रोफेसर श्रीवास्तव ने कहा कि विलियम शेक्सपियर कालिदास के लगभग समान हैं। इस प्रकार उन्होंने यह नई अवधारणा रखी। उन्होंने हिंदी तथा उर्दू साहित्य में कालिदासीय संदर्भो पर भी गंभीर विचार रखे। विशिष्ट वक्ता के रूप में प्रोफेसर अवनीश राय ने कहा कि पाश्चात्य देशों में कालिदास के व्यक्तित्व और कृतित्व पर महत्वपूर्ण कार्य हुए हैं। उन्होंने विलियम जोंस के कालिदास के साहित्य पर किए गए कार्यों की चर्चा की। 


इस अवसर पर महामहोपाध्याय प्रोफेसर रहसबिहारी द्विवेदी का  अभिनंदन हुआ ।अभिनंदन पत्र का वाचन डॉ सूर्यकांत त्रिपाठी ने किया ।स्वागत भाषण देते हुए विभागाध्यक्ष प्रोफेसर दीपक प्रकाश त्यागी ने कहा कि कालिदास संस्कृत साहित्य के महनीय कवि हैं। भारतीय साहित्य के अनेक कवि उनकी संचेतना से प्रभावित हैं।नागार्जुन, सुरेंद्र वर्मा,मोहन राकेश ने अपनी रचनात्मकता के माध्यम से कालिदास की रचनात्मक चिन्ता को विस्तार दिया है।कार्यक्रम का संचालन डॉ० देवेन्द्र पाल ने किया। प्रतिवेदन डॉ कुलदीपक शुक्ल ने रखा। इस अवसर पर प्रतियोगिता में सम्मिलित छात्रों को पुरस्कृत किया गया। कार्यक्रम में प्रोफेसर हरीश्वर दीक्षित, डॉ०सिंहासन पांडेय तथा अन्य विभागीय शिक्षक व  छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

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