पतहर, गोरखपुर । साहित्य विमर्श पर चर्चा करते हुए ये बात निकलकर आई जिसमें कहा गया साहित्य पर बहुत बहुत सी सूक्तियां है और इन्हीं में एक सूक्ति है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है परंतु वह एक ऐसा दर्पण है जो हमें उस रूप में दिखता है जैसा हम और साथ ही हमें जैसा होना चाहिए वह भी हमें दिखाता है । इस तरह देखें तो साहित्य एक मूर्त दर्पण है । समस्त सृष्टि में सभी क्षरण होता है और वे नष्ट होती है परंतु साहित्य कभी नष्ट नहीं होता ना ही उसका क्षरण होता है इसीलिए साहित्य की जिससे रचना होती है उसे अक्षर कहते हैं अर्थात जो क्षरित ना हो।
यह बातें आचार्य रामदेव शुक्ल ने कहीं। वे नेहा साहित्य वार्षिकी 2021-22 के लोकार्पण एवं नेहा साहित्य विमर्श सत्र में बतौर अध्यक्ष संबोधित कर रहे थे । इसके पूर्व प्रोफेसर रामदेव शुक्ल कार्यक्रम में उपस्थित राष्ट्रीय संघ सेवक संघ गोरक्ष प्रांत के प्रचारक सुभाष जी गुरु गोरक्षनाथ आयुर्विज्ञान संस्थान के कुलसचिव डॉ प्रदीप राव साहित्य वार्षिकी के संपादक कुसुम बुधलाकोटी पत्रिका के कार्यकारी संपादक अमित कुमार सह संपादक ध्रुव दास मोदी के द्वारा पत्रिका का विमोचन किया गया।
कार्यक्रम में बोलते हुए बतौर विशिष्ट अतिथि डॉ प्रदीप राव ने कहा कि ज्ञान के किसी विधा का संबंध यदि मानव से नहीं है सृष्टि से नहीं है समाज से नहीं है अर्थात चल और अचल जगत से नहीं है तो वह शायद किसी काम का नहीं होता।
इसके पूर्व पत्रिका के कार्यकारी संपादक अमित कुमार ने साहित्य विमर्श के अंतर्गत साहित्य पत्रिकाओं का सामाजिक सरोकार विषय पर अपना बीज वक्तव्य देते हुए कहा कि साहित्यिक पत्रिकाओं के सामाजिक सरोकार का अपने समय के सापेक्ष सर्वाधिक मुखर प्रमाण स्वतंत्रता के बाद 60 और 70 के दशक में मिलता है । उस समय तक स्वाधीनता आंदोलन के दौरान की उच्च मूल्यों की लगभग सभी पत्रिकाएं बंद हो गई थी उनकी जगह वाणिज्यिक पत्रिकाओं ने ले लिया था पर समाज ने महसूस किया कि इन पत्रिकाओं का कोई सामाजिक सरोकार नहीं है फलस्वरूप सीमित संसाधनों के द्वारा साहित्यकारों ने पत्रिकाएं शुरू की और ऐसी पत्रिकाएं सामाजिक सरोकारों के निमित्त थी जिन्हें लघु पत्रिका कहा गया ।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गोरक्ष प्रांत के प्रचारक सुभाष जी ने कहा कि साहित्य केवल विचार नहीं है साहित्य व्यवहार भी है और जब साहित्य का विचार और व्यवहार एक रूप हो जाता है तो वह समस्त जगत के लिए मार्गदर्शन का कार्य करने लगता है । लोक कल्याणकारी बन जाता है । साहित्य सारे सृष्टि को एक दृष्टि देता है और हर युग में हमको दृष्टि देने के लिए कोई ना कोई साहित्यकार खड़ा हो जाता है। सुभाष जी कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे।
पत्रिका के संपादक कुसुम बुधलाकोटी ने साहित्य वार्षिकी पर प्रकाश डाला। दूसरे सत्र में नेहा कला संगम द्वारा हरिशंकर परसाई की कहानी भोलाराम का जीव का नाट्य मंचन किया गया। इसका निर्देशन युवा एवं प्रसिद्ध रंगकर्मी मोहन आनंद आजाद ने किया। मंचन उपरांत प्रसिद्ध लेखक एवं शहरनामा गोरखपुर के संपादक वेदप्रकाश पांडे ने मंचित नाटक की समीक्षा करते हुए नाट्यशास्त्र के कलात्मक पक्ष पर अपनी बात रखी। ध्यातव्य है कि नेहा साहित्य वार्षिकी का यह तीसरा आयोजन था।नेहा साहित्य वार्षिकी की शुरुआत सन 2019 से किया गया था।
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