पतहर समाचार, बगहा। राजकीय डिग्री महाविद्यालय, बगहा मे सात दिवसीय अन्तर्विषयी अंतरराष्ट्रीय वेब व्याख्यान माला के दूसरे दिन 'जनसंख्या नियंत्रण की चुनौतियां' विषय पर हिंदी विभाग,केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफ़ेसर डॉ. धर्मेंद्र प्रताप सिंह के व्याख्यान का आयोजन किया गया । इस कार्यक्रम की शुरुआत वेब व्याख्यान माला के आयोजन सचिव एवं हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ. संदीप कुमार सिंह के स्वागत भाषण और अतिथि परिचय से हुई । उन्होंने कहा कि बढ़ती जनसंख्या हम सभी के लिए चुनौती भरा है । मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । वह समाज से अलग नहीं रह सकता है । व्यक्ति से अगली इकाई परिवार है । परिवारों से समाज व राष्ट्र बनता है । वह एक ऐसी इकाई है जो व्यक्ति से लेकर राष्ट्र तक से जुड़ी होती है । जनसंख्या परिवार कल्याण में सबसे बड़ी बाधा है । लगातार बढ़ती जनसंख्या के कारण देश की आर्थिक स्थिति कमजोर हो जाती है जिसके फलस्वरूप उस देश की अधिकांश जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने को मजबूर हो जाती है । आज के समय में चिकित्सा सेवाओं में वृद्धि, कम आयु में विवाह, निम्न साक्षरता, परिवार नियोजन के प्रति विमुखता, गरीबी और जनसंख्या विरोधाभास आदि ने जनसंख्या बढ़ाने में योगदान किया है।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ. धर्मेंद्र ने बताया कि जनसंख्या वृद्धि तो सुसंगत नहीं है लेकिन यह आशंका भी होती है कि जब जनसंख्या नियंत्रित होगी तो कुछ वर्षों बाद काम करने वाले हाथ कम होंगे और परिवार तथा समाज में आश्रितों की संख्या में वृद्धि होगी जिससे एक नई तरह की चुनौती हमारे सामने खड़ी हो जाएगी । असुरक्षा की भावना,पितृसत्तात्मक एवं सांस्कृतिक सोच में परिवर्तन करना चाहिए जिससे जनसंख्या को नियंत्रित किया जा सके । विकसित देशों में एक अलग तरह की समस्या देखने को मिल रही है वहाँ जब जनसंख्या को नियंत्रित किया गया तो कामगार हाथ कम हुए जिससे उनकी उत्पादन क्षमता पर भी प्रभाव पड़ा । अगर हम जनसंख्या को साहित्य की दृष्टि से देखें तो सीधे-सीधे तो नहीं लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से साहित्य पर भी असर पड़ता है क्योंकि साहित्य भी तो समाज के बीच से ही निकलता है । कुल मिलाकर जनसंख्या एक बड़ी चुनौती है । नीति निर्माताओं को एक मजबूत और ईमानदार जनसंख्या नीति बनाने के लिए पहल करनी चाहिए, जिससे देश की आर्थिक विकास दर का बढ़ती आबादी की मांग के साथ तालमेल बिठाया जा सके । आबादी पर नियंत्रण पाने के लिए जो बड़े कदम उठाए जा चुके हैं उन्हें और जोर देकर लागू करने की जरुरत है । महिलाओं और बच्चियों के कल्याण और उनकी स्थिति को बेहतर करना, शिक्षा के प्रसार,महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा, गरीबों के लिए ज्यादा स्वास्थ्य सेवा केंद्र आदि कुछ ऐसे कदम हैं जो आबादी को काबू करने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं । दुनिया में अलग अलग क्षेत्रों में भारत की ताकत को नहीं नकारा जा सकता । चाहे वो विज्ञान और तकनीक हो, मेडिसिन और स्वास्थ्य सेवा हो, व्यापार और उद्योग हो, सेना हो, संचार हो, मनोरंजन हो, साहित्य आदि कुछ भी हो । विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार द्वारा जन जागरुकता बढ़ाने और जनसंख्या नियंत्रण के कड़े मानदंड बनाने से देश की आबादी पर नियंत्रण पाया जा सकता है और इससे देश की आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा ।
वेब व्याख्यान माला की अध्यक्षता कर रहे महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो.रवींद्र कुमार चौधरी ने बताया कि बढ़ती जनसंख्या से संसाधनों की कमी हो जाती है और एक बड़ी आबादी तमाम समस्याओं से जूझने लगती है । पुराने समय में शिशु मृत्यु दर अधिक थी, किंतु समय के साथ चिकित्सा व्यवस्थाओं के आधुनिकीकरण एवं शासन द्वारा चलाई जाने वाली शिशु कल्याण नीतियों के कारण शिशु मृत्यु दर में बहुत कमी आई है । यह भी भारत में जनसंख्या वृद्धि का एक कारण है । रूढ़ीवादी सोच के चलते पिछड़े इलाकों के लोगों की सोच रूढ़ीवादी है । वे आज भी यही मानते हैं कि बच्चे तो ईश्वर की देन है एवं जितने अधिक बच्चे होंगे काम करने वाले हाथ भी उतने अधिक होंगे । कुल मिलाकर जनसंख्या नियंत्रण के विभिन्न कार्यक्रमों में अपनी उचित भागीदारी से ऐसे नियंत्रित किया जा सकता है ।
इस अवसर पर व्याख्यान माला की सह आयोजन सचिव डॉ. रेखा सहित,डॉ. गजेंद्र तिवारी, राजनीति विज्ञान विभाग के अजय कुमार, भूगोल विभाग के धर्मेश नंदा,नेहाल अहमद एवं विभिन्न प्रदेशों और विश्वविद्यालयों, शिक्षण संस्थाओं के शोधार्थी,विद्यार्थी, मीडियाकर्मी तथा शिक्षाविद उपस्थित रहे ।
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