रिपोर्ट:दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी
अमृतसर, पंजाब के स्थानीय डी.ए.वी. बालिका महाविद्यालय के सभागार में दिल्ली लाइब्रेरी, बोर्ड (संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार) द्वारा जलियावाला बाग नरसंहार के 100 वर्ष पूरे होने पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी में विभिन्न राज्यों से आए 65 लेखकों इतिहासकारों ने वक्तव्य एवं प्रतिभागी के रूप में भाग लिया।
उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में हिमाचल विश्वविद्यालय शिमला के कुलाधिपति श्री हरिमहेंदर सिंह बेदी, विशिष्ट अतिथि कालेज प्रबंधन समिति के अध्यक्ष श्री कपूर और प्राचार्या डॉ. पुष्पेन्द्र वालिया तथा अध्यक्षता दिल्ली लाइब्रेरी बोर्ड के अध्यक्ष ढॉ. रामशरण गौड़ ने की। विषय प्रवर्तन करते हुए श्री विनोद बब्बर ने कहा कि जो समाज अपने शहीदों को स्मरण नहीं करता, भयावह परिस्थितियां वहां बार-बार दस्तक देती हैं। जबकि अपने देश की संस्कृति और स्वतंत्रता के लिए मर मिटने वाले को श्रद्धा से जीवन्त रखने वाले स्वयं को सुरक्षित पाने में सफल रहते हैं क्योंकि वे उनके दिखाये मार्ग को जानते हैं और आवश्यकता पड़ने पर उस मार्ग का अनुसरण भी करते हैं । जलियांवाला बाग के नरसंहार से काला पानी की सेल्युलर जेल के अत्याचारों की गूंज ने देश के प्रत्येक भाग के लोगों को अंग्रेजों के विरूद्ध एकत्र होने के लिए प्रेरित किया ।
डा बेदी ने जलियांवाला बाग नरसंहार के वैश्विक प्रभावों की चर्चा करते हुए उसे अंग्रेजी साम्राज्य के पतन का मूल बताया। डा राम शरण गौड़ ने दिल्ली लाईबेरी बोर्ड के विभिन्न कार्यकलापों के बारे मं बताते हुए भारत की बलिदानी गाथा में गुरु गोविंद सिंह, बंदा बहादुर, भगतसिंह, उधमसिंह, राजगुरु, चन्द्रशेखर बिस्मिल सहित सभी ज्ञात- अज्ञात वीरों को नमन किया ।
डा ब्रजेश गौतम द्वारा संचालित इस सत्र में विनोद बब्बर की सद्य प्रकाशित पुस्तक ‘जलियांवाला बाग की गूंज’ का लोकार्पण भी हुआ। पुस्तकालय प्रभारी श्रीमती बबिता गौड़ ने सभी का आभार व्यक्त किया।
अन्य सत्रों में पंजाब की बलिदानी गाथा, बंदा बहादुर, भगत सिंह, उधम सिंह, राजगुरु, सुखदेव विषयों पर चर्चा हुई। जिनमें मुख्य वक्ता के रूप में श्री महेश चंद शर्मा (‘पूर्व महापौर), डॉ. मालती (पूर्व प्राचार्य, कालिंदी कॉलेज दिल्ली), डॉ. प्रशान्त गौरव (चंडीगढ़),, डॉ. सौरभ कुमार (लुधियाना), डॉ. अरुणा राजेंद्र शुक्ला, (नांदेड), आचार्य गौरांगशरण देवाचार्य (गुजरात), प्रो.देवेन्द्र कुमावत, भीलवाड़ा (राजस्थान), प्रो. जमनादेवी कृष्णराज (तमिलनाडु), डॉ. महेशचंद गुप्त (हरियाणा) ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
समापन सत्र में मुख्य अतिथि, डॉ. लक्ष्मी कान्ता चावला (पूर्व स्वास्थ्य मंत्री, पंजाब) ने संस्कृति मंत्रालय को आभार प्रकट करते हुए कहा कि उन्होंने जलियावाला बाग में इस संगोष्ठी को आयोजित कर देश के विभिन्न विद्याओं के विद्वानों को जलियावाला बाग के नरसंहार की घटना से आत्मसात कराया। ऐसे कार्यक्रम भारत के सभी प्रदेशों में आयोजित करने की आवश्यकता है। जिसमें लेखक बुद्धिजीवी लेखक ज्ञात- अज्ञात बलिदानियों के सम्बन्ध में विद्यालयों और महाविद्यालयों के विद्यार्थियों को उनके जीवन संघर्ष और देशभक्ति के सम्बन्ध में परिचित करा सकें और अमर बलिदानियों के प्रति देश की निष्ठा जागृत कर सकें । इस कार्यक्रम में अमृतसर के गणमान्य व्यक्तियों के साथ-साथ महाविद्यालयों के विद्यार्थियों ने भी भाग लिया ।
इस अवसर पर शहीद स्मृति चेतना समिति, दिल्ली द्वारा रक्त से बनाये शहीदों के चित्रों की प्रदर्शनी लगाई गई। प्रदर्शित चित्रों में शहीद उधम सिंह, शहीद भगत सिंह और गदर आंदोलन के करतार सिंह सराभा, कृष्ण वर्मा, सोहन सिंह भकना सहित अनेक स्वनामधन्य शहीदों के चित्र भी शामिल थे ।
इस संगोष्ठी के बाद देशभर के साहित्यकारों ने शहीद भगत सिंह के गांव खटकड़ कला, करतारपुर में बने ‘जंग ए आजादी’ म्युजियम का अवलोकन भी किया। वापसी में यह प्रतिनिधिमंडल फतेहगढ़ साहिब में गुरुपुत्रों के बलिदान स्थल पर बने गुरुद्वारा साहिब के दर्शन करेन भी गया । क्रूर मुगल नवाब ने गुरुपुत्रों को यहां जिंदा दीवार में चिनवा दिया था।
इस दल के सभी सदस्यों ने एकमत से संस्कृति मंत्रालय को आभार प्रकट करते हुए कहा कि जलियांवाला बाग में इस संगोष्ठी एवं अन्य कार्यक्रम को आयोजित कर देश के विभिन्न विद्याओं के विद्वानों को जलियावाला बाग के नरसंहार की घटना से आत्मसात कराया। उन्होंने भारत सरकार से इस प्रकार के कार्यक्रम की पूरे भारत के प्रदेशों में आयोजित करवाने का आग्रह किया जिसमें लेखक, बुद्धिजीवी, ज्ञात-अज्ञात बलिदानियों के सम्बन्ध में विद्यार्थियों और जनता को उनके जीवन संघर्ष और देशभक्ति के सम्बन्ध में परिचित करा सकें और अमर बलिदानियों के प्रति देश की निष्ठा जागृत कर सके।
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