प्रतिष्ठित कवि सुरेशसेन निशांत की स्मृति में समारोह
पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय शिलांग में दिनाँक 19 नवम्बर 2018 को 'पूर्वांगन संस्था 'की तरफ से आयोजित पूर्वांगन-2 के अंतर्गत कवि सुरेश सेन निशांत को समर्पित श्रधांजलि समारोह का आयोजन किया गया । पूर्वांगन संस्था के अध्यक्ष प्रो.भरत प्रसाद त्रिपाठी ने दिवंगत कवि के व्यक्तित्व तथा कवि के साथ हुए अपने विचारों का उल्लेख करते हुए कहा कि - मुझे यह विश्वास नहीं हो रहा कि सुरेश सेन निशांत नहीं रहे ।मैं इस मंच से कहना चाहता हूँ कि मैंने समकालीन कविता के एक कवि को खो दिया ।वे जितने अच्छे कवि थे उतने ही अच्छे इंसान थे ।उनकी कविता और व्यक्तित्व में समानता थी ।वे हिमाचल में अकेले ही कुचक्रों के खिलाफ़ विरोध करते थे ।वे सीधे और सच्चे व्यक्तित्व थे ।उन्होंने थोड़ा लिखा लेकिन अच्छा लिखा ।उनकी एक बड़ी खासियत यह थी कि वे सबको सम्मान देते थे ।निशांत कविता में हो रही राजनीति के कारण दुःखी थे और इस मंच से मैं यह कहना चाहता हूँ कि उनकी मृत्यु साधारण तरीके से नहीं हुई बल्कि डिप्रेसन के कारण हुई क्योंकि वे कविता में दोहरे चरित्र के खिलाफ़ थे । वे अपने मात्र दो संग्रहों के आधार पर ही समकालीन कविता के शीर्ष कवि थे ।यह एक मात्र संयोग है कि मुक्तिबोध के दो संग्रह - चाँद का मुंह टेढ़ा और भूरी - भूरी खाक धूल और सुरेश सेन निशांत के भी दो संग्रह - वे जो लकड़हारे नहीं हैं और कुछ थे जो कवि थे । कवि के दोनों संग्रहों में संकलित प्रत्येक कविताएं अपने आप में अनूठी हैं । वे अपने घर वालों से यहां तक भी कह चुके थे कि मुझे कविता के अलावा कोई जिम्मेदारी न दी जाये । इससे पता चलता है कि कवि अपनी कविता को लेकर कितना जिम्मेदार था ।
प्रो.भरत प्रसाद ने आगे अपने विचार रखते हुए कहा कि मैं जब तक जीवित हूँ तब तक निशांत को जीवित रखूँगा और उनके व्यक्तित्व की एकता और कविताएं दोंनो ही हमें बल देती रहेंगी । उनके विरोध का साहस मेरे भीतर हमेशा बना रहेगा ।इसके बाद सुरेश सेन निशांत की कविताओं पर प्रकाश डालते हुए डॉ.अनिता पांडा ने कहा कि सुरेश सेन निशांत की कविताएं हमारे समय की परिघटनाओं तथा समाज की पीड़ा को बड़े ही सक्रिय रूप में हमारे सामने उपस्थित करती हैं । उनकी कविताओं में पहाड़ी स्त्री के संघर्ष तथा उनकी आवाज बड़े ही नए रूप में उपस्थित कर हमें उनकी पीड़ा तथा उनके प्रश्नों से रू-ब-रु कराती हैं ।कवि की कविताओं की स्त्री अपनी परम्पराओं को तोड़ती है जो स्त्री स्वर को नया आयाम प्रदान करती है ।निशांत की कविताओं में एक पीड़ा है और उस पीड़ा को उन्होंने अपनी कविताओं में बखूबी उकेरा है । उनकी कविताओं की नारी व्यापक धरातल पर आकर शोषक व्यवस्था के खिलाफ़ लड़ती है ।'काम पर लड़की' कविता इसी भाव भूमि की तरफ इशारा करती है।कवि की नारी परम्पराओं ,रूढ़ियों को तोड़कर अपने लिए एक सुरक्षित समाज की मांग करती नजर आती है ।
डॉ.अनिता पांडा ने कवि की 'माँ की कोख ' काम पर लड़की , तथा लड़कियाँ आदि कविताओं का वाचन भी किया । ततपश्चात दिवंगत कवि के ऊपर श्री आलोक सिंह ने आलेख पाठ किया और अपने विचार रखते हुए कहा कि उनकी कविता में हिमाचल की प्रकृति के प्रति एक बेचैन करुणा है साथ ही साथ खेती -किसानी ,बचपन ,स्त्री ,बुढ़ापे, सगे-सम्बन्धियों तथा गुमनाम -उपेक्षित के प्रति भी करुणा है ।उनकी कविताएं भव्यता से दूर उन सामान्य जन की कविताएं हैं जो लगातार हाशिये पर रहा है ।यह कवि हिमाचल के पहाड़ ,वहाँ के लोगों के दर्द को बड़ी बखूबी से अपनी लेखनी में शामिल करता है । निशांत की कविताओं की सबसे बड़ी चिंता हिमाचल की प्रकृति को बचाने की है । कवि का अनुरागी मन निर्मल पहाड़ के परिवेश में रमता हुआ दिखाई देता है ।कवि ने बड़ी सादगी से पर्यावरण के संकटों की व्यथा -कथा कही है ।उसे आशंका है कि एक दिन पेड़ों और पहाड़ों की तरह नदी की भी हत्या हो सकती है ।
कार्यक्रम का संचालन श्री सुनील कुमार ने किया तथा उन्होंने कहा कि सुरेश सेन निशांत हाशिए के विषयों को अपनी कविता के विषय बनाते रहे हैं ।धन्यवाद ज्ञापन श्री अजित कुमार ने कवि की अंतिम कविता 'कस्बे का कवि' के साथ किया ।
3 Comments
बहुत आभारी हूँ पतहर के लिए।जो कि इतने त्वरित गति से कार्यक्रम की नोटिस ली,प्रकाशित किया।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और सार्थक आयोजन की रपट पढ़कर मन प्रफुल्लित हुआ | चलिए कहीं तो नैतिकता और ईमानदारी बची हुयी है ! सुरेश सेन निशांत बहुत ही महत्वपूर्ण समकालीन कवि थे | उन्होंने मेरे पास भी दोनों संकलन भेजा था | मुक्तिबोध के असमय निधन के बाद उनके दोनों काव्य संकलन प्रकाशित हुए थे | निशांत के काव्य संकलन दोनों ही उनके जीवन काल में प्रकाशित हो चुके थे| निशांत मुक्तिबोधीय परंपरा के कवि नहीं थे | बहरहाल, निशांत पर आयोजन करना बेहद ज़िम्मेदारी और नैतिकता से जुड़ी कार्यवाही है | भरत प्रसाद को साधुवाद | पतहर को रपट प्रकाशित करने पर भी धन्यवाद |
ReplyDeleteनिशांत मेरे प्रिय कवि थे । उनकी कविताये पहाड़ की यंत्रणा और वहां के लोगो के दुख को प्रकट करती हैं । उन्होंने एक पत्रिका में साक्षात्कार के लिए मुझसे संपर्क किया था । उसके बाद वे मित्रवत हो गए थे । मेरी हिमाचल यात्रा का आयोजन उन्होंने किया था । वे मंडी में पदस्थापित थे । मुझे वहां रुकना था । एक दो दिन के ठहराव में उनसे बहुत सी बातें हुईं । वे मझे बेहद मासूम और सहज लगे । मेरी बहुत सी कविताये उन्होंने सहेज कर रखीं हुई थी । उसमें जनसत्ता में छपी वह कविता भी थी जिसे मैंने कश्मीर के शुरुवाती संकट के काल मे लिखी थी । यह 1989 का वक्त था । मेरे परिवार को वह बहुत प्रिय थे । उनकी मृत्यु की सूचना से घर के लोग काफी दुखी थे । मैं तो इस दुखद सूचना से काठ हो गया था । एक अच्छे कवि से ज्यादा एक उम्दा आदमी अचानक हमारे बीच से चला गया । जब कभी मैं हिमाचल यात्रा के बारे में सोचता हूं तो निशांत का चेहरा सामने होता है ।
ReplyDelete