इस संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए 'वर्तमान साहित्य' पत्रिका के संपादक डॉ. संजय श्रीवास्तव ने कहा कि धूमिल की कविताएँ शोषित समाज के पक्ष में खड़ी हुई कविताएँ हैं। उनकी कविताओं में गहन राजनीतिक चेतना है। धूमिल के बाद आपातकाल, आतंकवाद, भूमंडलीकरण, सूचना क्रांति के माध्यम से नवसाम्राज्यवाद का बढ़ता दबाव, सोवियत संघ के विघटन आदि की चर्चा करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि वे वस्तुत: नागार्जुन, त्रिलोचन और केदारनाथ सिंह की परंपरा के कवि हैं। आगे उन्होंने धूमिल के बाद की कविता पर बात करते हुए ज्ञानेंद्रपति, अरुण कमल, आलोक धन्वा, लीलाधर जगूड़ी, अशोक वाजपेयी, नरेश सक्सेना, राजेश जोशी, चंद्रकांत देवताले, गोरख पांडे, महेश्वर, अनामिका, गगन गिल, कात्यायनी, देवी प्रसाद मिश्र, अष्टभुजा शुक्ल, बद्रीनारायण, स्वप्निल श्रीवास्तव, मदन कश्यप, बोधिसत्व, एकांत श्रीवास्तव, व्योमेश शुक्ल, अनुज लुगुन, संध्या नवोदिता, विहाग वैभव, रूपम मिश्रा जैसे कवियों के कवि कर्म की चर्चा की।
संगोष्ठी के आरंभ में आए हुए अतिथियों का स्वागत प्राचार्य प्रो. धर्मेंद्र कुमार सिंह ने किया। उन्होंने अपने स्वागत वक्तव्य में कहा कि धूमिल की कविताएँ मानवता के पक्ष में खड़ी हुई कविताएँ हैं। उनकी कविताओं में किसानों का दर्द गहराई से समय हुआ है। आजादी से हुआ मोहभंग उनकी कविताओं में आक्रोश और विद्रोह का रूप ले लेता है। संगोष्ठी का संचालन प्रो. गोरखनाथ ने तथा धन्यवाद प्रो. सुधीर राय ने दिया।
0 Comments