प्रकृति के साथ जीवन जीना होगा। तेजी से कट रहे वृक्ष को रोकना होगा और अधिक से अधिक वृक्ष लगाना होगा तभी हमारी पीढ़िया बिना एसी के भी रह सकेंगी अन्यथा पृथ्वी का तापमान इतना बड़ जाएगा कि कुछ दिन में यह भी दुष्प्रभावी हो जाएगी और तमाम तरह के रोग से शरीर ग्रसित हो जाएगी
*दयाशंकर पांडेय
पाश्चात्य विद्वान रूसो ने एक नारा दिया Back to nature । आज जो स्थिति बन रही है वह बहुत ही भयावह है । हम प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं और कृत्रिम प्रकृति की ओर जीने का अभ्यस्त होते जा रहे हैं । उसका दुष्परिणाम मानव समाज को भुगतना पड़ रहा है । आज जल समस्या, दूषित वातावरण जैसी गम्भीर समस्या हमारे जीवन को प्रभावित कर रहे हैं । हमने वृक्ष लगाना छोड़ दिया लेकिन उसकी कटान जनसंख्या वृद्धि के साथ बढ़ती जा रही है । बरसात भी अनियंत्रित हो रही है । बाढ़ की समस्या भी हर वर्ष न जाने कितनी जाने लेती हैं।
आज पृथ्वी का तापमान सामान्य से बहुत अधिक हो गया है । पीछे जाकर अगर कुछ वर्ष पूर्व की बात करें तो इतनी गर्मी नही थी । तापमान नियंत्रित था । सूर्य की किरणों में ऊष्मा इतनी नही थी, स्किन भी नही झुलसती थी किन्तु आज आप बाहर 15 मिनट निकल के देखिये बस । चेहरे पर उसका असर दिख जाएगा।आज ग्लोबल वार्मिंग से विश्व जूझ रहा है। ओज़ोन परत में छिद्र बढ़ता जा रहा है।हमारी पृथ्वी नुकसान दायक परा बैगनी किरणों से प्रभावित होती जा रही है । कबतक हम एसी से बचते रहेंगे । यह एयर कंडीशन भी हमारे वातावरण को दूषित करते जा रहे हैं । व्यक्ति आज परेशान है । इसका सबसे प्रबल कारण यह है कि हम प्रकृति के साथ चलने की वजाय प्रकृति को अपने अनुसार ढालाने की कोशिश करने लगे हैं जिसके कारण आज यह गम्भीर संकट निरन्तर बढ़ता जा रहा है..।
आज मानव विज्ञान के नाम पर उस ईश्वरीय सत्ता को चुनौती दे स्वयं को स्वयंभू घोषित कर रहा है । हर जगह छेड़छाड़ कर रहा है । लेकिन यह प्रकृति हर जगह यह संकेत देती और आभास कराती है कि जहाँ से विज्ञान की सीमा समाप्त होती है वहां से प्रकृति की सीमा शुरू होती है । मानव जिस विज्ञान की प्रगति के सहारे स्वयं को स्वयंभू घोषित कर रहा है उसकी प्रगति और मानव मस्तिष्क का विकास देखकर हँसी आती है क्योंकि उसने विज्ञान के सहारे परमाणु बम का आविष्कार किया लेकिन यह भूल गया कि यह किसके विनाश के लिए सृजित हुआ है...। अपनी इन्ही कुछ उपलब्धियों से हम गौरवान्वित होते हैं । हमने अपनी नेचुरल लाइफ छोड़ दी है ।
कुल का निचोड़ यह कि हमें आज से बिना समय गंवाए रूसो के उस नारे को आत्मसात करके जीना होगा ।प्रकृति के साथ जीवन जीना होगा। तेजी से कट रहे वृक्ष को रोकना होगा और अधिक से अधिक वृक्ष लगाना होगा तभी हमारी पीढ़िया बिना एसी के भी रह सकेंगी अन्यथा पृथ्वी का तापमान इतना बड़ जाएगा कि कुछ दिन में यह भी दुष्प्रभावी हो जाएगी और तमाम तरह के रोग से शरीर ग्रसित हो जाएगी ।
सच में वृक्ष लगाना आज हमारी विवशता है... हमने पर्यावरण को इतना दूषित कर दिया है कि साँस लेना भी ऐसे माहौल में दुष्कर है... विकासवाद का छलावा देकर हमने प्रकृति से जो खेलने की जुर्रत की है वही आज हमारे समक्ष एक चुनौती बनकर खड़ी है... विज्ञान ने आज बहुत सारे विकास के मानक स्थिर किए है किन्तु इस महाविनाश के आगे वह भी मौन है... उस पर नियंत्रण नहीं उसका... हम आज हाइवे और फोर लेन और सिक्स लेन बनाने की बात कितने गर्व से करते है किन्तु कभी सोचा है हमने कि दोनों तरफ के वृक्षों का जो निर्ममता से वध किए हैं उसकी भरपाई भी उस सड़क पर चलने वाले लोगों से और उनकी पीढ़ियों से ही होनी है... आज सरकार व्यापक स्तर पर वृक्षारोपण का कार्यक्रम संचालित करा रही है... वृक्ष लग भी रहे हैं किन्तु उनमे से कितने बच पाएंगे यह एक गंभीर चुनौती या कहें कि यक्ष प्रश्न बनकर सामने उपस्थित है...
आज बहुत तेजी से पर्यावरण के दूषित होने के दुष्प्रभाव से मनुष्य प्रभावित हो रहे हैं... पानी तक स्वच्छ नहीं बचा इस धरती पर... हर जगह मिलावट ही मिलावट... आज वृक्षारोपण के इस महासंग्राम में हर विभाग पूरे मनोयोग से इस मुहिम को सफल बनाने में लगा है.. हम उम्मीद जरूर कर सकते हैं कि आने वाले समय में इस मानवता के उपर संभावित खतरे से निजात पा जाएँगे किंतु बीच के इन समयों में हमें सजगता के साथ कम से कम प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करना होगा क्योंकि जो वृक्ष इधर लगाए जा रहे उन्हें तैयार होने में भी वक्त लगेगा.... इसलिए हमें इस अभियान में बढ़ चढ़कर भाग लेना होगा।
आइये इस विश्व पर्यावरण दिवस पर वृक्ष लगाने का प्रण लें... अपने पीढ़ी को सबसे बहुमूल्य भेंट दें... वृक्ष से धरा को हरा भरा करें... स्वच्छ वायु दें.. स्वच्छ जल दें... तमाम बीमारियों को रोक दें । स्वागत करें इस अभियान का..।।
संपर्क:
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय पननी
विकास क्षेत्र लोटन
जनपद सिद्धार्थनगर