पतहर

पतहर

पलायन और केवल पलायन #वरुण पाण्डेय#

#पलायन और केवल पलायन#

प्रस्तुति:वरुण पांडेय

सभी सरकारें समाप्त हो जाएं। 
अब तो कुछ ऐसा ही हो।।

अब तक प्राप्त राजसत्ता की हर डिग्री ध्वस्त हो जाए। 
अब तो कुछ ऐसा ही हो ।।

क्यों ऐसा क्यों ?

क्योंकि पलायन ही पलायन है। 
बड़ा पलायन है

लेकिन किधर? 

जीवन जीने की ओर या जीवन जीने आशा की ओर । 
मरने की ओर या मर ना पाने की निराशा की ओर ।। 

हर बुद्धिजीवी की तरह मुझ अल्पज्ञ को भी नीतियां मुझे भी अच्छी लगती हैं।
पलायन को ना देखूं तो नीतियों की हर बात सच्ची लगती है। 

लेकिन पलायन वो भी टूटती आशाओं का पलायन जारी है।
गर्भवती और लाल को चपकाये कन्धे से माँ का रक्त रसायन जारी है।।

ऐसा लगता है लोगों ने सरकारों से शिकायत करना ही छोड़ दिया। 
बड़े बुद्धिमान होते हर एक (मतलब हर एक) नेता ने बरसों से आज तक भारत का पुर्जा पुर्जा ही कोड़ दिया।। 

लोगों के जीवित या मृत शरीर को बोकार शायद कुछ फलेगा। 
नहीं तो भूख से मृत्यु और चल- चलकर होने वाली मृत्यु में त्वरित अन्तरकर 
आशा से निराशा में जाते लोगों का धड़ा तो चल-चल कर ही मृत्यु पर पलेगा ।।

प्रस्तुति:वरुण पांडेय