पतहर

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कवि मलखान सिंह दलित साहित्य के शेखस्पियर थे

 जनमोर्चा सभागार, फैज़ाबाद, अयोध्या। प्रलेस, अयोध्या ने वरिष्ठ दलित कवि दिवंगत मलखान सिंह पर एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया। सभा की अध्यक्षता शहर के वरिष्ठ कवि व गीतकार प्रलेस के अध्यक्ष श्री दयानंद सिंह मृदुल ने किया तथा संचालन प्रलेस के अध्यक्ष मंडल के वरिष्ठतम साथी श्री अयोध्या प्रसाद तिवारी ने किया।

सर्वप्रथम, प्रलेस के जिला सचिव कॉ. आर डी आनन्द ने दलित कवि मलखान सिंह के बारे में विस्तार से बताया कि श्री मलखान सिंह दलित साहित्य के आधुनिक शेखस्पियर थे। क्रांतिकारी और विद्रोही दलित कवि मलखान सिंह का जन्म 30 सितम्बर 1948 को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाँव वसई काजी, जिला- हाथरस (अब अलीगढ़) के दलित परिवार में हुआ था। मलखान सिंह ने उच्च शिक्षा अलीगढ़ और आगरा से प्राप्त किया। मलखान सिंह के पिता का नाम श्री भोजराज सिंह और माता का नाम श्रीमती कलावती था। जब वे आठवीं के छात्र थे तभी उनकी मां का देहांत हो गया था। उनकी पत्नी श्रीमती चंद्रावती सिंह का देहांत 19 मार्चब2003 को हो गया था। है। इनके भाइयों में श्री पृथ्वी सिंह, श्री कुमर सिंह, श्री शेर सिंह,श्री नाहर सिंह, श्री अशोक सिंह, श्री विजय सिंह हैं। पुत्र श्री मानवेन्द्र सिंह और पुत्रबधू श्रीमती लता सिंह हैं। पुत्रियों और दामादों में श्रीमती प्रतिभा सिंह पत्नी डॉ. रामेश्वर दयाल, श्रीमती मीता सिंह पत्नी श्री विमल वर्मा, श्रीमती कृष्णा सिंह पत्नी श्री संदीप वर्मा और श्वेता सिंह हैं। पौत्र तपेन्द्र और पौत्री कृति हैं। इनका वर्तमान पता-कालिंदी विहार आगरा, निकट बुद्धा पार्क, सौ फुटा रोड, आगरा है। पहले ये ताजगंज, ताजमहल के निकट ही रहते थे। वह भी इनका निजी आवास था। बाद में उसको बेंचकर वे सौ फुटा रोड पर कालिंदी विहार में आवास निर्माण करवा लिया था। मलखान सिंह को मजदूर आंदोलनों में सक्रीय भागीदारी की वजह से दो बार तिहाड़ जेल जाना पड़ा था। वे 1979 से 2008 के मध्यावधि में आगरा के पूर्व बेसिक शिक्षा अधिकारी तथा एटा के पूर्व जिला विद्यालय निरीक्षक रहे। सन 2012 के साहित्य सर्वेक्षण में ''आउटलुक" ने उन्हें सबसे अधिक लोकप्रिय दलित कवि करार दिया था। मलखान सिंह अपने पहले कविता संग्रह "सुनो ब्राह्मण" के साथ 1996 में चर्चा में आए और साहित्य जगत में सूर्य की तरह स्थापित हो गए। देहरादून में जिस मंच पर ओमप्रकाश वाल्मीकि जी को परिवेश (1996) सम्मान दिया गया था, उसी मंच पर डी. प्रेमपति ने मलखान सिंह के कविता-संग्रह "सुनो ब्राह्मण'’ का विमोचन भी किया था। लोकार्पण कार्यक्रम में काशीनाथ सिंह, अनिल चमड़िया और डॉ. रघुवंशमणि त्रिपाठी भी मौजूद थे। ओमप्रकाश वाल्मीकि ने मलखान सिंह की कविताओं को जनवादी कविताएँ कहकर दलित कविताओं की पंगत से खारिज कर दिया था। ऐसा माना जाता है कि दलित कविता में जनवादी चेतना की बहस वहीं से प्रारम्भ हुई। कँवल भारती और बजरंग बिहारी तिवारी ने मलखान सिंह की कविता में ब्राह्मण और सामंतवाद के गठजोड़ की सार्थक अभिव्यक्ति को सर्वप्रथम स्थापित करने का काम किया था। बजरंग तिवारी ने कथादेश में मलखान सिंह पर विशेष सामग्री छापी थी। 

तदन्तर, अपनी बात को जारी रखते हुए कॉ. आर डी आनंद ने बताया, मलखान सिंह दलित साहित्य के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। "सुनो ब्राह्मण" इनका बहुचर्चित दलित कविता संग्रह है। सर्वप्रथम यह 1996 में 'परिवेश' पत्रिका के संपादक मूलचंद गौतम द्वारा चंदौसी, मुरादाबाद से प्रकाशित किया गया। दूसरा संस्करण 1997 में मलखान सिंह ने स्वयं प्रकाशित किया। वर्तमान संस्करण 2018 में 'रश्मि प्रकाशन' लखनऊ से हरे प्रकाश उपाध्याय जी द्वारा प्रकाशित किया गया है। शुरू में इस संग्रह में 16 कविताएँ थीं और बहुत रद्दी पेपर पर प्रकाशित हुआ था। उस संग्रह को सुरक्षित रखना बहुत कठिन था, हलाकि, वह प्रथम संस्करण आज भी मेरे पास सुरक्षित है। दूसरे संस्करण में भी वही चित्र और वही 16 कविताएँ थीं। इस वर्तमान संग्रह में भी वही 16 कविताएँ हैं। इस संग्रह की एक नई विशेषता यह है कि इसमें मलखान सिंह की लेखकीय टिप्पणी के साथ ओम प्रकाश वाल्मीकि की "मलखान सिंह की कविताएँ", कमला प्रसाद की "अधिकार संघर्ष की कविता", कँवल भारती का "मलखान सिंह का कविता-संघर्ष", अजय तिवारी की "अच्छी कविता की जमीन", सूरज बडात्या का "महास्वप्न की महाभिव्यक्ति", बजरंग बिहारी तिवारी की "दलित संवेदना और मलखान सिंह की कविताएँ", और नमस्या का "फटी बंडी का बोध: जातिबोध का महाख्यान" जैसी सात समीक्षाएं, मूल्याङ्कन और अध्ययन सामिल किया गया है। इनका दूसरा काव्य-संकलन "ज्वालामुखी के मुहाने" को रश्मि प्रकाशन, लखनऊ ने 2019 में प्रकाशित किया, जिसे भी पाठकों ने खूब सराहा। मैंने भी उनकी कविताओं की समीक्षा में तकरीबन 75 पेज लिखा है जो मलखान सिंह को बहुत अच्छा लगा। उन्होंने लेख की बहुत सराहना की है।

भारतीय जीवन बीमा निगम, मंडल कार्यालय फैज़ाबाद में सहायक प्रशासनिक अधिकारी के पद पर कार्य करने वाले राम सुरेश शास्त्री ने बताया कि महान कवि मलखान सिंह हमारे बीच नहीं रहे। यह बहुत दुखद है।  2006 में जब मैं ZTC आगरा में ट्रेनिंग हेतु गया था तो मेरे परम मित्र आर डी आनन्द जी के कहने पर डॉ राजाराम और मलखान सिंह जी के घर गया था। उस समय मलखान सिंह जी ताजगंज आगरा में अपने निजी मकान में रहते थे। लगभग 07 बजे सायं को उनके आवास पर पहुँचा और उनकी भारीभरकम शरीर और बुलंद मूँछ और कड़क आवाज़ से मैं सहमते हुए अन्दर प्रवेश किया । बातचीत के दौरान उनकी सहृदयता देखकर मैं दंग रह गया था । उनके साथ साहित्यिक चर्चा तीन घण्टे हुई और डिनर करने के उपरान्त रात्रि 10 बजे मैं ट्रेनिंग सेंटर सिकंदरा के लिए प्रस्थान किया । पुनः 27 मई 2019 को जब मैं उनसे मिला तो उनकी दुबली और मूँछ रहित शरीर को देखकर हैरान हो गया । मैंने पूँछा सर आप को क्या हो गया है ? जैसा मैंने आप को देखा था उसमें बदलाव है। उनके साथ बिताए गये एक एक पल मुझे उम्र भर प्रेरणा देते रहेंगे। मलखान सिंह साहब अपने व्यक्तित्व और अपनी कृति सुनो ब्राह्मण के कारण हमेशा याद किये जाएंगे । मेरी तरफ से उनको विनम्र अश्रुपूरित श्रद्धान्जलि ।

वरिष्ठ दलित कवि श्री आशाराम जागरथ जी ने बताया कि वे एक महान दलित कवि थे। मुझे दुख हो रहा है कि मैं इतने बड़े कवि से नहीं मिल पाया। उन्होंने अपनी एक कविता "सुन बभना" पढ़कर श्रद्धांजलि अर्पित किया।

प्रलेस के संरक्षक व वरिष्ठ कवि स्वप्निल श्रीवास्तव ने बताया कि मलखान सिंह से मेरा परिचय बहुत पुराना था। उन्होंने कहा, मुरादाबाद चंदौसी में हमारे एक साथी आलोचक हैं मूलचन्द गौतम, उन्होंने परिवेश पत्रिका निकालना शुरू किया। उस प्लेटफार्म से उन्होंने मलखान सिंह का कविता संग्रह "सुनो ब्राह्मण" प्रकाशित किया था, उसमें कुछ सोलह कविताएँ थीं। पुस्तक का पेपर बहुत ही साधारण था लेकिन पुस्तक असाधारण हो गई। उनकी लिखी कविताएँ  जन-सामान्य कविताओं से भिन्न हैं। दरअसल, वह समय दलित अस्मिताओं का समय था, दलित साहित्य के उभार का समय था तथा उनके समकालीन कई दलित कवि विभिन्न स्तर की कविताएँ लिख रहे थे लेकिन मलखान सिंह को कविताओं का वह तेवर व शिल्प पसंद नहीं था, इसलिए उन्होंने कुछ नए तेवर व शिल्प की कविताएं लिखीं जो कालांतर में लोकप्रिय हुईं और आज जेएनयू और लखनऊ जैसे विश्विद्यालय में उनकी कविताएँ पढ़ाई जा रही हैं। यह एक बड़ी उपलब्धि है। इससे उनके महत्व का पता चलता है।

श्रद्धेय मलखान सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए वरिष्ठ आलोचक डॉ. रघुवंशमणि त्रिपाठी ने बताया कि उनकी कविताएँ परंपरावाद को नकारती हैं और स्थापित दर्शन से प्रश्न करती हैं। उनकी कविता में लालित्य की जादूगरी नहीं है बल्कि समाज का यथार्थ उभरता है। मलखान सिंह मजदूर आंदोलनों में भाग लेने के कारण दो बार जेल भी गए हैं। प्रारंभिक दौर में वे मार्क्सवादी थे। ओमप्रकाश वाल्मीकि ने उन्हें दलित कवि नहीं जनवादी कहा था और कविताओं को जनवादी कविताएँ कहकर दलित खेमे से हटा दिया था किंतु वरिष्ठ आलोचक और चिंतक कँवल भारती ने मलखान सिंह को दलित कवि और उनकी कविताओं को दलित कविताओं के रूप में स्थापित करने की कोशिश की। उन्होंने बताया कि देहरादून की सभा में मैं भी था। वहाँ दलित साहित्य के मूल सवालों पर जोरदार बहस हुआ कि दलित साहित्य क्या है? क्या इसका कोई भविष्य है? इसका सौंदर्यबोध क्या होगा? इत्यादि। सभा के दौरान काशीनाथ सिंह को अपनी एक टिप्पणी पर श्योराज सिंफह बेचैन से माँफी मांगनी पड़ी। सौंदर्य का कोई एक पैमाना नहीं है। उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया, किसी स्त्री के सौंदर्य के बारे में भी कोई एक पैमाना नहीं है। अफ्रीकियों को अपनी स्त्रियों के मोटे होंठ अच्छे लगते हैं तो भारतीयों को अपनी स्त्रियों के पतले होंठ अच्छे लगते हैं। इसी तरह दलित साहित्यकारों ने अपने सत्य की अभिव्यक्ति के लिए अलग मापदंड तैयार किए। "सुनो ब्राह्मण" जातीय अस्मिता की अभिव्यक्ति है। मलखान सिंह के कविता संग्रह ने लोगों के ध्यान को आकृष्ट किया। उनकी कविताएँ मनुष्य को छूती हैं। उनकी कविताएँ जमीनी हक़ीक़त की समकालीन कविताएँ हैं। 

डॉ. विशाल श्रीवास्तव जी ने बताया कि मलखान सिंह परंपरागत दायरे से बाहर थे। सौंदर्यबोध स्थिर चीज नहीं है, वह निरन्तर बदलता है। मलखान सिंह समकालीन सौंदर्यबोध के दायरे में रचते हैं। दलित जीवन मे परिवर्तन नहीं दिखता है। अँधेरा बहुत गहरा है। अपना हाथ अपने ही हाथ को खोजने में गच्चा खा जाता है। उनकी कविताएं आत्मकथात्मक कविताएँ है। वे नए प्रतीक और नए बिम्ब गढ़ते हैं। 
अनीश चौधरी ने उनकी कविताओं को पढ़कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित किया।

अंत में, अध्यक्ष श्री दयानंद सिंह मृदुल ने कहा कि मलखान सिंह की कविताएं प्रगतिशील दलित कविताएँ हैं और दलित परिवेश की कविताएँ हैं। मलखान सिंह की कविता का मजदूर दलित है और दलित होने के नाते वह सर्वहारा भी है। मलखान सिंह का श्रमिक आम्बेडकर का श्रमिक है, वह मार्क्स का मजदूर नहीं है और न खाली-पीली सर्वहारा ही है। मलखान सिंह ने जनवादी दृष्टिकोण से सताए हुए मनुष्य का पड़ताल नहीं किया है बल्कि दलित जीवन के भोगे यथार्थ को चित्रित किया है। स्वानुभूति को चित्रित किया है परानुभूति को नहीं। मलखान सिंह ने मुहाबरों, छंदों, अलंकारों, रूपकों, बिम्बों, प्रतीकों का समुचित प्रयोग किया है। दलित साहित्य में दलित साहित्य का सौंदर्य दलित जीवन का सच है। मलखान सिंह ने अपनी कविताओं में दलित जीवन के यथार्थ को पाठकों के मानस पटल पर अंकित कर दिया है। उनकी भाषा सरल किन्तु मारक है। कविताओं के भाव इतिहास के मंजर उपस्थिति करने में समर्थ हैं। मलखान सिंह की कविता "मैं आदमी नहीं हूँ" दलित जीवन का दस्तावेज है। इस कविता में वह दलितों के शारीरिक दशा, संसाधन, रोटी, कपड़ा, मकान, जल, विस्तर, भय, परतन्त्रता को अणुओं के रूप में बम में संलयित करते हैं। मैं उनकी अमानिवियता के विरुद्ध समता और बन्दुत्व के लिए आवाज उठाने वाली कविताओं को याद करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

सभा में सर्वश्री दयानंद सिंह मृदुल, कॉ. अयोध्या प्रसाद तिवारी, श्री स्वप्निल श्रीवास्तव, कॉ. राम तीर्थ पाथक, डॉ. रघुवंशमणि, आर डी आनंद, संदीपा दीक्षित, सूर्यकांत पांडेय, रामानंद सागर, विशाल श्रीवास्तव, आशाराम जागरथ, सत्यभान सिंह जनवादी, धीरज द्विवेदी, राम सुरेश शास्त्री, शशिकांत पांडेय, खलीक अहमद खान, अनीश चौधरी, अतीक अहमद, आशीष अंशुमाली, निरंकार भारती, देवेश ध्यानी, रविन्द्र कुमार कबीर आदि ने अपना वक्तव्य रखा।

तत्पश्चात, सभी साथियों ने खड़े होकर दो मिनट का मौन रखकर श्री मलखान सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित किया और अध्यक्ष ने सभा को विसर्जित किया।


प्रस्तुति:आर डी आनंद
सचिव
प्रलेस, अयोध्या
11.08.2019

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