पतहर

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भाषा के भीतर की तलाश है कविता -प्रो.श्रीप्रकाश शुक्ला

इलाहाबाद।
हिन्दी विभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय के तत्वावधान में एकल व्याख़्यान और कविता पाठ का सफल आयोजन निराला सभागार में  किया गया । आमंत्रित कवि के रूप में  बीएचयू के प्रोफ़ेसर श्रीप्रकाश शुक्ल ने 'कविता का स्वभाव' विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा- कि कविता स्वभावतः  स्वाधीन होती है । इसमे प्रयोग और परिवर्तन की अपार संभावनाएं होती हैं ।यह जन आकांक्षा को स्वर देती है ।इसमें प्रकाश की दीर्घकालिक प्रक्रिया होती है।

उन्होंने कहा की कविता भाषा के भीतर विकल्प की तलाश   है। गूँज कविता का प्रमुख  स्वाभाविक गुण है। जितनी बड़ी कविता होगी उसकी गूँज उतनी ही गहरी और विस्तृत होगी । आकांक्षा, योग्यता और आसक्ति कविता के प्रमुख गुण हैं।शब्द को उन्होंने प्रकाश के लिए अति महत्वपूर्ण माना।अंत में कहा कि कविता न तो अच्छी होती है ,न बुरी।अपने स्वभाव में वह स्वाधीन व अग्रगामी होती है।जो कविता अपने कवि से संघर्ष नहीं करती,वह कमजोर हो जाती है।
 इस आयोजन की अध्यक्षता करते हुए  प्रो0 अली अहमद फ़ातमी ने कहा कि श्रीप्रकाश शुक्ल की कविताएँ अपने समय का आइना हैं जिसमें आज के समय के हर रंग को देखा व समझा जा सकता है ।उन्होंने कहा कि कविता जीवन की उथल पुथल से निकलती है।वह सऊरे इल्म से अधिक सऊ रे कायनात है।


इस अवसरपर श्रीप्रकाश शुक्ल ने अपनी कई प्रसिद्ध कविताओ का पाठ किया जिनमें "वाया नई सदी", "गाय", "सब बदले पर तुम न बदले", 'चुप्पी के खिलाफ', 'विकास', 'मनिहार', 'रहष्य' और 'शोर' को श्रोताओं ने खूब सराहा।
स्वागत वक्तव्य श्री सूर्य नारायण जी ने दिया  । संचालन डॉ कुमार वीरेन्द्र जी ने  और धन्यवाद ज्ञापन डॉ सुधा त्रिपाठी जी ने किया ।इस अवसर पर विश्वविद्यालय के तमाम छात्र-छात्राएँ एवं शहर के गणमान्य लोग उपस्थित थे ।
प्रस्तुति -शिव कुमार यादव

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